Saturday, January 10, 2009

क्या अंतर है मनुष्य और जानवरों में


विनय बिहारी सिंह

क्या कभी हम सोचते हैं कि हममें और जानवरों में क्या अंतर है? अगर हां, तो आइए एक बार फिर सोचें। जानवर भी शौच करते हैं, भोजन करते हैं, स्नान करते हैं, क्रीड़ा करते हैं, सोते हैं और बच्चे पैदा करते हैं। ठीक यही काम हम लोग भी करते हैं। बल्कि एक कदम आगे बढ़ कर हम भोजन में स्वाद ढूंढ़ने लगते हैं और कई बार ढेर सारा समय और पैसा खर्च कर मनचाहा स्वाद पाते हैं। कुछ दिन बाद फिर वही स्वाद हमें सताने लगता है। जानवर जब मरते हैं तो उनका चमड़ा मनुष्य के काम आता है। लेकिन मनुष्य जब मरता है तो उसका चमड़ा काम नहीं आता। वह बदबू मारने लगता है। तब हम जानवरों से कैसे श्रेष्ठ हैं? ईश्वर ने हमें सोचने, समझने और विवेक की शक्ति दी है। इच्छा शक्ति दी है। फिर भी हम नहीं समझ पाते कि हमारा इस पृथ्वी पर जन्म क्यों हुआ है। हम इंद्रियों के दास बन जाते हैं। आंख, कान, नाक, जीभ और त्वचा हमें अपना गुलाम बना लेते हैं। इंद्रियां हमें जैसे नचाती हैं, हम वैसे ही नाचते हैं। तो हमारा जन्म इस जगत में क्यों हुआ है? ऋषि- मुनियों ने कहा है कि अनेक जन्मों के बाद हमारा मनुष्य योनि में जन्म इसीलिए हुआ है कि ताकि हम ईश्वर को जान सकें और उसे पा सकें। लेकिन इसके लिए उन्होंने जो मार्ग बताया है, उस पर श्रद्धा से चलना पड़ेगा। अपने जीवन को संतुलित करना पड़ेगा। इस जगत में सब कुछ ईश्वर के ही अधीन है। हर व्यक्ति, जीव- जंतु उसी से शक्ति पाता है। लेकिन कुछ लोग अपनी शक्ति पर घमंड कर बैठते हैं। मैं शक्तिशाली हूं, ऐसा समझ बैठते हैं। अहंकार के कारण उन्हें समझ में नहीं आता कि जिस शक्ति पर वे इतना इतरा रहे हैं, उसे ईश्वर ने दिया है। तो हम विवेक, श्रद्धा और भक्ति से ईश्वर को पाने के लिए पृथ्वी पर आए हैं। इस तरह हम पशुओं से अलग हैं। हममें अगर प्रेम, भाईचारा और परहित नहीं है तो फिर पशु और हम एक नहीं हो जाएंगे?