Wednesday, December 17, 2008

संत रैदास के बारे में कुछ नए तथ्य

विनय बिहारी सिंह

संत रैदास अद्भुत व्यक्तित्व के धनी थे। वे जब ध्यान में बैठते थे तो उन्हें होश नहीं रहता था कि कितने पहर रात बीत गई। कई बार तो वे सुबह तक ध्यानमग्न बैठे रहते थे और अगले दिन फिर अपने रोजमर्रा के कामों में जुट जाते थे। उनके चेहरे पर कोई थकान नहीं रहती थी। उल्टे उनका चेहरा तरोताजा और खूबसूरत दिखता था। संन्यासिनी मीरा बाई ने उन्हें यूं ही अपना गुरु नहीं बनाया था।
संत रैदास का भजन-
प्रभु जी तुम चंदन, हम पानी
बहुत ही प्रसिद्ध है और आज भी भक्त इसे सुन कर भाव विभोर हो जाते हैं। संत रैदास वैसे तो जूता- चप्पल सीने का काम करते थे, और उनकी स्कूली शिक्षा- दीक्षा कम ही हुई थी लेकिन उनका गयान बहुत गहरा था और बड़े बड़े विद्वान उनकी बातें सुनने के लिए लालायित रहते थे। उनका ग्यान किताबी नहीं, अनुभवजन्य था। संत रैदास से मिलने वालों में लगभग सभी समकाली विद्वान शामिल थे।
एक बार वे काफी थके थे। रात को वे खा- पीकर रात को ध्यान करने जा रहे थे तभी उनके यहां एक साधु आए और भोजन की इच्छा जताई। घर में एक दाना अनाज नहीं था। पड़ोस में मांगने गए लेकिन वहां भी अनाज नहीं था। तब वे रात को बनिए के घर गए। उसकी दुकान खुलवाई और उधार अनाज ले आए। दुकानदार रैदास की अहमियत जानता था। वह उनके चमत्कारों को देख चुका था। घर अनाज आया, खाना बना। अतिथि ने खाया और तब तक आधी रात बीत गई थी। लेकिन फिर भी संत रैदास ध्यान में बैठे और पूरी रात ध्यान करते रहे। थकान की उन्होंने परवाह नहीं की। ध्यान में प्रभु मिलन से ज्यादा सुख और ही क्या सकता है?