विनय बिहारी सिंह
ऋषियों और संतों ने कहा है कि ऊं शब्द ब्रह्म है। और वही सत्य है। बाकी सब असत है। ऋषि पातंजलि ने कहा है कि जिसने ऊं से संपर्क कर लिया उसने ईश्वर से संपर्क कर लिया। ईश्वर ही सत्य है। ऊं अनादि, अनंत और नित्य है। हम सो जाते हैं लेकिन ऊं सर्वत्र, हर समय, हर वस्तु में व्याप्त और स्पंदित होता रहता है। तब हम इस स्पंदन को महसूस क्यों नहीं कर पाते? इसलिए कि यह ध्वनि अत्यंत सूक्ष्म है। लेकिन अगर आप शांत, स्थिर मन और ठीक से धारणा करें तो साफ- साफ सुनाई पड़ सकती है। निरंतर। जैसे कभी न रुकने वाली तेल की धार हो। इसकी नकल नहीं की जा सकती। मुंह से निकाला गया ऊं असली ऊं की नकल नहीं है। यह एक आभास मात्र है।
यही ऊं ईश्वर की क्रियाशील शक्ति है। ईश्वर सक्रिय है। इसलिए वह शक्ति है। कुछ संतों का कहना है कि ईश्वर जब निष्क्रिय होते हैं तो वे शिव हैं, लेकिन जब सक्रिय होते हैं तो वे शक्ति हैं- दुर्गा हैं, काली हैं या माता पार्वती हैं। उनसे कैसे संपर्क किया जा सकता है? शांत और ध्यानस्थ हो कर। निरंतर प्रार्थना करते हुए। प्रार्थना में काफी शक्ति है। सच्चे दिल से गहरे और निरंतर प्रार्थना ऊं तत सत तक पहुंचा देती है। हरि ऊं तत् सत्।
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