Friday, December 19, 2008

चैतन्य देव क्यों हैं महाप्रभु?

विनय बिहारी सिंह

कुछ लोग सवाल करते हैं कि प्रभु तो ठीक है लेकिन चैतन्य देव को चैतन्य महाप्रभु क्यों कहा जाता है? है न रोचक सवाल? लेकिन इसका जवाब भी उतना ही रोचक है। चैतन्य देव को गौरांग महाप्रभु, चैतन्य महाप्रभु और यहां तक कि संक्षेप में महाप्रभु भी कहा जाता है। पश्चिम बंगाल में आपको अनेक दुकानें दिख जाएंगी, जिनका नाम महाप्रभु स्वीट्स या महाप्रभु स्टोर आदि है। ठीक वैसे ही जैसे- रामकृष्ण स्टोर या रामकृष्ण स्वीट्स आदि। तो चैतन्य देव महाप्रभु क्यों हैं? भगवान कहते हैं कि भक्त हमारे, हम भक्तन के। कहीं- कहीं उन्होंने यह भी कहा है कि भक्त हमसे भी बड़ा है। अगर प्रभु इतने बड़े हैं तो उनका अनन्य भक्त महाप्रभु होगा ही। लेकिन सभी भक्त महाप्रभु नहीं हो सकते। जो अनन्य भक्त होगा। यानी जो प्रभु के अलावा और कुछ सोच ही नहीं सकता। सोते, उठते, बैठते, स्नान करते, काम करते यानी हर क्षण, ईश्वर में ही रमा रहने वाला भक्त महाप्रभु हो सकता है।
एक बार चैतन्य महाप्रभु हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे गाते हुए चले जा रहे थे। रा्स्ते में एक धोबी अपनी पत्नी के साथ तालाब में कपड़े धो रहा था। चैतन्य महाप्रभु ने कहा- मेरे साथ कीर्तन करो। धोबी अनिच्छा से हरे राम हरे राम गाने लगा। देखते देखते वह इतना भाव विभोर हो गया कि उसके हाथ से कपड़ा छूट गया। उसकी पत्नी अवाक हो गई। बोली- यह क्या पागलपन है? चैतन्य महाप्रभु ने धोबी की पत्नी से भी कहा- तुम भी मेरे साथ कीर्तन करो। उसने कीर्तन करने से इंकार कर दिया। चैतन्य महाप्रभु ने कहा- एक बार, सिर्फ एक बार गाओ। अचानक धोबी की पत्नी भी कीर्तन करने लगी- हरे राम, हरे राम राम राम हरे हरे। उसके हाथ से भी कपड़ा छूट गया। धीरे- धीरे सारा गांव चैतन्य महाप्रभु के साथ कीर्तन करने लगा। ऐसा था प्रभाव चैतन्य महाप्रभु का। इसीलिए तो वे महाप्रभु हैं।