विनय बिहारी सिंह
तैलंग स्वामी के बारे में कुछ नए तथ्य जानकर बड़ी खुशी हुई। उन्होंने लगभग ४० साल की साधना की। तब जाकर वे अमरनाथ से लौट कर इलाहाबाद होते हुए वाराणसी में आए। वे अंत तक वहीं रहे। उनकी उम्र कितनी थी, यह किसी को नहीं मालूम। कई लोग ३०० साल बताते हैं तो कई ५०० साल तक।
उनके पास कोई थोड़ी देर के लिए भी बैठता था तो उसका मन शांति और आनंद से भर जाता था। ऐसे तपस्वी दुर्लभ होते हैं। वे पंचगंगा घाट, दशाश्वमेध घाट और कभी कभी मणिकर्णिका घाट पर रहते थे। उन्होंने असाध्य रोगों से पीड़ित अनंत लोगों को स्वस्थ किया। लेकिन कभी भी स्वस्थ कर देने का श्रेय खुद को नहीं देते थे। एक बार एक दुबला पतला व्यक्ति बीमार पड़ा। वह तैलंग स्वामी जी की कृपा से स्वस्थ तो हो गया लेकिन उसका शरीर हड्डियों का ढांचा रह गया। उसने कई टानिक वगैरह पीए। कुछ नहीं हुआ। वह फिर तैलंग स्वामी की शरण में गया। उन्होंने कहा- रोज एक गिलास दूध पीया करो। उसने कहा- मैं तो रोज पीता हूं। वे बोले- नहीं, ऐसे नहीं, यह भभूत लो। इसे दूध में मिला कर पीया करो। उस व्यक्ति ने ऐसा ही किया। महीने भर में उसके चेहरे पर लाली आ गई। उसके शरीर पर मांस आ गया और वह खेल कूद प्रतियोगिता में अव्वल आया। तैलंग स्वामी की कृपा के प्रति उसने आभार जताया तो वे बोले- मेरी नहीं, सब ईश्वर की कृपा है। वही स्वस्थ रखता है, और हम अपनी करतूतों के कारण बीमार होते हैं। बीमारी हम लाते हैं। ईश्वर तो हमें स्वस्थ रखता है।
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