एक बेहद अविश्वसनीय खबर पढ़ने को मिली। मुझे इस सर्वे पर शंका हो रही है। आइए पहले खबर पढ़िए-
भारतीयों की धर्म में दिलचस्पी घट रही है. कई लोगों का भगवान में यक़ीन नहीं है और वो ख़ुद को धार्मिक नहीं मानते. हालांकि ख़ुद को पूरी तरह नास्तिक कहने वालों की तादाद में गिरावट आई है. ग्लोबल इंडेक्स ऑफ़ रिलीजियॉसिटी एंड अथीज़्म की ताज़ा रिपोर्ट से ये जानकारी सामने आई है.
आपने खबर पढ़ी। जहां तक मुझे पता है भारत में धर्म में दिलचस्पी बढ़ी है। लोग योग और आध्यात्मिक गतिविधियों मे ज्यादा रुचि ले रहे हैं। आप पूछेंगे कि इसका प्रमाण क्या है? आप पिछले साल की तुलना में भारत के तमाम प्रसिद्ध मंदिरों में जाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या का पता लगा लीजिए। आपको पता चल जाएगा कि भारत में लोगों की धर्म में दिलचस्पी घट रही है या बढ़ रही है। मुझे पक्का यकीन है कि ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है। अध्यात्म के प्रति, ध्यान (मेडिटेशन) के प्रति लोगों में उत्सुकता बढ़ रही है। आप सभी ध्यान केंद्रों, संस्थानों में जा कर पता लगाइए।
भारत गांवों का देश है। आप गांवों में जाइए। वहां सर्वे कीजिए। मुझे नहीं पता ग्लोबल इंडेक्स ऑफ़ रिलीजियॉसिटी एंड अथीज़्म के लोग भारत के गांवों में गए थे या नहीं। लेकिन मुझे इस पर कतई विश्वास नहीं हो रहा है कि भारत के लोगों की भगवान में दिलचस्पी घट रही है। भाई, इस तरह का सर्वे आपने क्यों कराया? क्या आप नास्तिकता का झंडा गाड़ना चाहते हैं? आपको कैसे लगा कि भारत में भगवान को मानने वाले कम हो रहे हैं? अब हम किसी भी सर्वे को आंख मूंद कर स्वीकार नहीं करेंगे। एक बार खबर आती है कि चाकलेट खाने वालों का स्वास्थ्य उत्तम रहता है। तो कुछ दिनों बाद खबर आती है कि चाकलेट में अमुक तत्व यह रोग बढ़ाता है। कभी खबर आती है कि काफी पीने से यह फायदा होता है तो कभी खबर आती है कि काफी पीने से यह नुकसान होता है। मुझे तो लगता है कि सर्वे कराने वाले खुद कनफ्यूज हैं। समग्र भारत के विचार अचानक किसी सर्वे में पता चल जाए, यह मुझे संभव नहीं लगता। बहरहाल मुझे अपने विचार रखने की पूरी आजादी है। और मैं किसी हालत मे इस सर्वे को मान नहीं सकता। पूरे भारत का सर्वे इतना आसान नहीं है भाई।
2 comments:
ईश्वर है या नहीं, धर्म में लोगों की आस्था घट रही है या बढ़ रही है इस तरह के विषयों पर सर्वे कराना न आसान है और न ही इस तरह के किसी भी सर्वे से शत प्रतिशत परिणाम की आशा ही की जा सकती है। दुनिया के अरबों-खरबों लोगों की राय महज कुछ देशों के हजार लोगों को टटोल कर नहीं जानी जा सकती। फिर ऐसे सर्वे में किस तरह के किस वर्ग और मानसिकता के लोगों के दिलों को टटोला गया है, यह भी महत्वपूर्ण होता है। विनय भाई हम आपकी बात से सहमत हैं कि आजकल लोगों की धर्म,योग, ध्यान और पूजा-पाठ पर आस्था बढ़ी है। पश्चिमी देशों के लोग तक अध्यात्म और शांति की तलाश में भारत आने लगे हैं। वहां तक भारतीय आध्यात्म और भक्ति का प्रकाश फैलाने में इस्कॉन के संस्थापक श्रील प्रभुपाद भक्ति वेदांत स्वामी और ऐसे ही कई धर्मगुरुओं और उपदेशकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। तीर्थाटन करने वाले लोगों को पता होगा कि आजकल हरिद्वार जैसे तीर्थस्थलों में विदेशियों की संख्या किसी भी मायने में कम नहीं होती। ये लोग जितना पर्यटन के लिए आते हैं उससे कहीं अधिक विश्व का धर्मगुरु माने जाने वाले भारत के आध्यात्म से साक्षात्कार करने, उस परिवेश में जीने आते हैं। कितने विदेशी यहां आकर साधक बन गये और भारतभूमि में ही रम गये। ईश्वर की अनुभूति भाव-भक्ति से होती है परीक्षा लेने से नहीं। जिनमें भाव नहीं उनमें ईश्वर की समझ का अभाव होता है। ईश्वर प्रतिपल अपने होने का एहसास कराता चलता है बस उसे समझने की दृष्टि और आत्मसात करने का सामर्थ्य जिनमें है, उन्होंने उसे समझा और उसके समीप हो गये। जो परीक्षा करते और संदेह में उलझे रहे वे जगत की उलझन में उलझ कर रह गये जैसे मकड़ी के जाले में कीट। अब यह तो व्यक्ति को स्वयं तय करना है कि वे कीट बनना है या साधक रामकृष्ण परमहंस जैसा महान साधक जिन्हें लोग ठाकुर कहने लगे। दोष ईश्वर में नहीं हमारी दृष्टि और भावना में है जो इतनी प्रखर हो ही नहीं सकी कि उस दिव्य प्रकाश से साक्षात्कार कर सके। हम तो बस जग की माया को ही सत्य मान बैठे हैं और उस परिधि से बाहर कुछ सोचने का सामर्थ्य ही खो बैठे हैं। ऐसे सर्वे जितने बढ़ेंगे, देखिएगा प्रभु की प्रति आस्था भी लोगों में उसी गति से बढे़गी इसलिए ऐसे सर्वे से डरने की आवश्यकता नहीं बस इसे हंस कर टालने की आवश्यकता है।-राजेश त्रिपाठी
भले ही हिग्स-बोसोन कण ब्रह्माण्ड की पहेली का अंतिम उत्तर न हो। परन्तु उसकी खोज ने परमाणु के मानक नमूने की पहेली को सुलझा दिया है।
भौतिकी का नोबेल : ईश्वरीय कण के नाम
http://www.basicuniverse.org/2013/12/Bhautiki-Nobel-2013.html
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