Saturday, February 14, 2015

महान योगी
श्री श्री परमहंस योगानंद 
विनय  बिहारी  सिंह





महान योगी श्री श्री परमहंस योगानंद  पश्चिमी देशों में योग के प्रणेता के रूप में जाने जाते हैं। उनकी शिक्षा पद्धति क्रिया योग पर आधारित है। क्रिया योग की संक्षिप्त जानकारी देने से पहले आइए जानें इस महान संत के जीवन के बारे में। श्री श्री परमहंस योगानंद का जन्म पांच जनवरी १८९३ को उत्तर प्रदेश के नगर गोरखपुर में हुआ था।  बचपन से ही उनमें गहरी आध्यात्मिक रुझान थी।
  वे बचपन में हिमालय में साधना के लिए घर से भागे लेकिन घर वालों ने उन्हें पकड़ लिया। उनके पिता श्री भगवती चरण घोष (१८५३-१९४२) बंगाल- नागपुर रेलवे (बीएनआर) में उपाध्यक्ष (वाइस प्रेसीडेंट) के समकक्ष पद पर कार्यरत थे।  यात्रा उनके पिता की नौकरी का ही हिस्सा थी, इसलिए उनका परिवार अनेक शहरों में रहा। उनकी माता ज्ञानप्रभा घोष (१८६८- १९०४) अत्यंत धार्मिक और प्रेममयी महिला थीं। श्री श्री परमहंस योगानंद के माता- पिता विख्यात  संत,  योगावतार श्यामा चरण लाहिड़ी (लाहिड़ी महाशय) के शिष्य थे। माता बचपन में उन्हेंं अनेक धार्मिक कथाएं सुनातीं। लेकिन जब परमहंस जी च लगभग ११ वर्ष के बच्चे थे, तभी उनकी माता का देहांत हो गया। वैराग्य ने तब उन पर और गहरे प्रभाव डाला।
  सन १९१५ मेें कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद श्री योगानंद जी को उनके गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि जी ने संन्यास की दीक्षा दी। श्रीयुक्तेश्वर जी ने भविष्यवाणी की थी कि, भारत की प्राचीन क्रिया योग ध्यान प्रविधि का समूचे विश्व में प्रचार करना ही उनके जीवन का मूल उद्देश्य होगा। उन्हें सन १९२० में अमेरिका के बोस्टन शहर में होने वाले धार्मिक उदारवादियों के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधि के रूप में भाग लेने का निमंत्रण मिला। उन्होंने  अपने गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वर जी की अनुमति  से यह निमंत्रण स्वीकार कर लिया। इस प्रकार वे अमेरिका गए और वहां ही अपने जीवन का अधिकांश समय बिताया। वे बीच में अपने गुरु के देह त्याग के सूक्ष्म संकेत पर १९३५ में भारत आए और कुछ महीने गुरु प्रदत्त कार्य कर १९३६ वापस चले गए। लेकिन भारत  में अपने कार्य में उनकी गहरी रुचि थी। उनकी रुचि के कारण ही भारत में उनका कार्य व्यापक रूप से फैला। महासमाधि के समय उन्होंने भारत की प्रशंसा में ही कविता पढ़ी थी। परमहंस योगानंद गुरु परंपरा में अंतिम गुरु थे। उनके बाद जो भी संन्यासी संघ के शीर्ष पद पर होता है, वह कुछ सन्यासियों को अधिकृत करता है जो क्रिया योग की दीक्षा देने का माध्यम बनते हैं। श्री श्री परमहंस योगानंद की शिक्षावली, पाठ ( लेसन) के रूप में हर माह डाक से घर आ जाती है। इन पाठों में व्यक्त पद्धतियों का अनुसरण करने पर साधक को अद्भुत लाभ मिलता है। इन पाठों में साधना के समूचे तत्व विद्यमान हैं। साधना पद्धतियां साधक को नई चेतना में ले जाती हैं- ईश्वर की ओर। यदि किसी साधक को कोई चीज समझ में नहीं आती तो वह बिना हिचक किसी योगदा संन्यासी से मिल कर शंका निवारण कर सकता है या रांची (झारखंड) मुख्यालय में पत्र लिख कर जानकारी ले सकता है। योगदा का अपना वेबसाइट भी है, वहां भी इस बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध है।
   अपनी शिक्षाओं के प्रसार के लिए श्री श्री परमहंस योगानंद ने योगदा सत्संग सोसाइटी अॉफ इंडिया/सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप की स्थापना की। ये दोनों संस्थाएं आध्यात्मिक और परोपकारी संस्थाएं है। योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया की स्थापना श्री श्री परमहंस योगानंद ने सन १९१७ में की थी। परमहंस जी विख्यात आध्यात्मिक पुस्तक ''आटोबायोग्राफी अॉफ अ योगी'' (हिंदी अनुवाद- ''योगी कथामृत'') के लेखक हैं। उन्होंने समूचे विश्व के आध्यात्मिक सत्यान्वेषियों के लिए यह अनूठी पुस्तक लिखी जो विश्व की ३४ भाषाओं में अनूदित हो चुकी है। इसका उर्दू अनुवाद भी उपलब्ध है।
श्री श्री परमहंस योगानंद की शिक्षावली क्रिया योग पर केंद्रित है। यह एक परम पवित्र आध्यात्मिक विज्ञान की विधा है, जो आदि काल से चली आ रही है। संप्रदायवाद से परे इन शिक्षाओं में जीवन के संपूर्ण तथ्यों और जीवन- दर्शन प्रत्यक्ष रूप से समाहित है जिसमेें मनुष्य की बहुआयामी सफलता और सुखी जीवन के तत्व हैं। इसके अलावा इन शिक्षाओं में जीवन का चरम उद्देश्य - आत्मा का परमात्मा से मिलन के लिए ध्यान के तरीके बताए गए हैं।
जैसा कि परमहंस योगानंद ने अपने लक्ष्य और आदर्शों को व्यक्त किया है- योगदा सत्संग सोसाइटी का कार्य- विश्व परिवार के विविध प्रकार के लोगों और धर्मों के प्रति प्रेम व सद्भाव के लिए गहरी समझ को प्रोत्साहित करना और सभी संस्कृतियों और राष्ट्रों के लोगों के बीच मनुष्य की आत्मा की सुंदरता, अभिजात्यता और आध्यात्मिकता का अनुभव करने के लिए प्रेरित करना है।
योगदा सत्संग सोसाइटी अॉफ इंडिया ९० वर्षों से भी अधिक समय से इसके संस्थापक श्री श्री परमहंस योगानंद के आध्यात्मिक निर्देशों और मनुष्य की सेवा का कार्य कर रही है।
आज पूरे देश में योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया के १८० केंद्र हैं। सोसाइटी देश भर में २३ शैक्षणिक संस्थानों का संचालन कर रही है। यह संस्था कई सामाजिक, परोपकारी गतिविधियों, जैसे गरीबों और जरूरतमंदों की चिकित्सा सेवा, प्राकृतिक आपदा से पीड़ित लोगों के लिए राहत कार्य, कुष्ठ रोगियों के लिए चिकित्सा सेवा, गरीब मेधावी विद्यार्थियों के लिए आर्थिक सहायता और छात्रवृत्ति भी देती है।
अपने लेखों व भारत, अमेरिका और यूरोप के सघन  दौरोंं में अपने व्याख्यानों द्वारा व अनेक आश्रम व ध्यान केंद्र बनाकर उनके माध्यम से हजारों सत्यान्वेषियों को उन्होंने योग के प्राचीन विज्ञान- क्रिया योग और दर्शन से
तथा ध्यान पद्धतियों से परिचित कराया। इस समय  योगदा सत्संग सोसाइटी अॉफ इंडिया/सेल्फ-रियलाइजेशन फेलोशिप की संघमाता और अध्यक्ष के रूप में श्री श्री मृणालिनी माता हैं। इसके पहले १९५५ से लेकर २०१० दया माता यह जिम्मेदारी संभाल रही थीं। उनके पहले राजर्षि जनकानंद जी लगभग दो वर्ष तक इस शीर्ष पद पर रहे। उनके पहले स्वयं श्री श्री परमहंस योगानंद ही अध्यक्ष थे। वे सात मार्च १९५२ को महासमाधि में लीन हुए। अर्थात मृणालिनी माता श्री श्री परमहंस योगानंद जी के बाद तीसरी अध्यक्ष और दूसरी संघमाता हैं।
  अब एक संक्षिप्त जानकारी क्रिया योग के बारे में। वैसे तो कुछ प्राचीन यौगिक विधि निषेधों के कारण क्रिया योग का पूर्ण विवरण देना वर्जित है। संपूर्ण रूप से इसे दीक्षा के समय ही जाना जा सकता है। इन पंक्तियों के लेखक ने यह दीक्षा ली है। हर साल योगदा सत्संग सोसाइटी अॉफ इंडिया के माध्यम से अनेक लोग दीक्षा लेते हैं। फिर भी श्री श्री परमहंस योगानंद जी ने अपनी पुस्तक ''आटोबायोग्राफी अॉफ अ योगी'' में जितना बताना संभव है, बता दिया है। उसे ही यहां दिया जा रहा है-
''क्रिया योग एक सरल मनःकायिक प्रणाली है जिसके द्वारा मानव रक्त कार्बन रहित होकर आक्सीजन से प्रपूरित हो जाता है। इस अतिरिक्त आक्सीजन के अणु प्राण- धारा में रूपांतरित हो जाते हैं, जो मस्तिष्क और मेरुदंड के चक्रों में नवशक्ति का संचार कर देती है। शिराओं में बहने वाले अशुद्ध रक्त का संचय रुक जाने से योगी उत्तकों में होने वाले ह्रास को रोक सकता है या कम कर सकता है। उन्नत योगी अपनी कोशिकाओं को प्राणशक्ति में रूपांतरित कर देता है। एलाइजा, इसा मसीह,कबीर औऱ अन्य महानुभाव क्रिया योग या उसी के समान किसी प्रविधि के प्रयोग में अवश्य निष्णात थे, जिसके द्वारा वे अपने शरीर को अपनी इच्छानुसार प्रकट या अंतर्धान कर सकते थे। ''
   परमहंस योगानंद पर पिछले साल अमेरिका में एक फिल्म बनी है- अवेक, द लाइफ आफ योगानंद। इसका निर्देशन दो मशहूर महिलाओं ने किया है- पावला डी फ्लोरियो और लिसा ली मैन। इसके निर्माता हैं- पीटर राडर। फ्लोरियो आस्कर नामांकित निर्देशक हैं। वे टेलीविजन प्रोड्यूसर भी हैं। यह फिल्म कई अवार्ड जीत चुकी है। अब भारत में इस फिल्म के रिलीज होने की प्रतीक्षा की जा रही है। इन पंक्तियों के लेखक ने निर्देशकों से ई मेल के माध्यम से संपर्क किया था। उनका कहना है कि वे भारत में किसी स्पांसर की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस फिल्म की शूटिंग लगभग ३० देशों में हुई है। जाहिर है भारत में जिन जगहों से परमहंस जी जुड़े हैं, इस फिल्म में उनका भी दृश्य है। लास एंजिलिस टाइम्स ने इस फिल्म को गहरे प्रभावित करने वाला बताय है।
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२० दिन के बाद भी उनका पार्थिव शरीर जस का तस 

 देहांत के २० दिन के बाद भी उनका पार्थिव शरीर जस का तस था
परमहंस जी द्वारा लिखित पुस्तक ''आटोबायोग्राफी आफ अ योगी'' के अंतिम हिस्से में इस घटना का उल्लेख है। इसका शीर्षक है- ''जीवन में भी योगी और मृत्यु मेें भी''। उसका अनुवाद  आप भी पढ़ें-

श्री श्री परमहंस योगानंद जी ने  लॉस एंजिलिस, कैलिफोर्निया (अमेरिका) में सात मार्च १९५२ को भारतीय राजदूत श्री विनय रंजन सेन के सम्मान के लिए आयोजित भोज के अवसर पर अपना भाषण समाप्त करने के बाद ''महासमाधि'' (एक योगी का सचेतन अवस्था में देह त्याग) में प्रवेश किया।
 विश्व  के महान गुरु ने योग के मूल्य (ईश्वर-  प्राप्ति के लिए वैज्ञानिक प्रविधियों) को जीवन में ही नहीं बल्कि देहांत के बाद भी प्रदर्शित किया। उनके देहावसान के कई सप्ताह बाद भी उनका अपरिवर्तित चेहरा अक्षयता की दिव्य कांति से आलोकित था।
फारेस्ट लॉन मेमोरियल- पार्क, लॉस एंजिलिस (जहां इस महान गुरु का पार्थिव शरीर अस्थायी रूप से रखा गया है) के  निदेशक श्री हैरी टी रोवे ने सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप को एक  प्रमाण पत्र भेजा था, जिसके कुछ अंश निम्नलिखित हैंः
''परमहंस योगानंद  के पार्थिव शरीर में किसी भी प्रकार के विकार का लक्षण नहीं दिखाई पड़ना हमारे लिए एक अत्यंत असाधारण और अपूर्व अनुभव है। .. उनके देहांत के बीस दिन बाद भी उनके शरीर में किसी प्रकार का विघटन नहीं दिखाई पड़ा। न तो त्वचा के रंग में किसी प्रकार परिवर्तन के संकेत थे और न शरीर के उत्तकों  में शुष्कता आई प्रतीत होती थी। शवागार (मार्चुअरी)  के इतिहास में हमें जहां तक विदित है, पार्थिव शरीर की परिपूर्ण संरक्षण की ऐसी अवस्था अद्वितीय है। .. योगानंद  का पार्थिव शरीर स्वीकार करते समय शवागार के कर्मचारियों को यह आशा थी कि उन्हें  शवपेटिका के कांच के ढक्कन  से आमतौर से बढ़ते शारीरिक क्षय के चिह्न दिखाई पड़ेंगे। हमारा विस्मय बढ़ता गया, जब निरीक्षण के अंतर्गत दिन पर दिन बीतते गए, लेकिन उनकी देह पर परिवर्तन के कोई चिह्न दिखाई नहीं पड़े।... योगानंद  की देह निर्विकारता की अद्भुत अवस्था में थी।
    ''किसी भी समय उनके शरीर से तनिक भी दुर्गंध नहीं आई।  २७ मार्च को शवपेटिका पर कांसे के ढक्कन को बंद करने के पूर्व योगानंद  का शारीरिक रूप ठीक वैसा ही था जैसा ७ मार्च को। २७ मार्च को भी उनका शरीर उतना ही ताजा और विकाररहित दिखाई पड़ा, जितना कि उनके  देहांत वाली रात को। २७ मार्च को ऐसा कोई कारण नहीं दिखा जिससे कहा जा सके कि उनके शरीर में किसी भी प्रकार का थोड़ा भी विकार आया हो। इन कारणों से हम  फिर बताना चाहते हैं कि परमहंस योगानंद  का उदाहरण हमारे अनुभव में अभूतपूर्व है।
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उनके सम्मान में डाक टिकट

 श्री श्री परमहंस योगानंद की महासमाधि की पच्चीसवीं वर्षगांठ पर भारत सरकार ने, उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था। इस डाक- टिकट के साथ, भारत सरकार ने एक पर्चा प्रकाशित किया, जिसका एक अंश इस प्रकार है-
''ईश्वर के लिए प्रेम और मानवता की सेवा का आदर्श परमहंस योगानंद के जीवन में पूर्ण  रूप से व्यक्त हुआ.. यद्यपि उनका अधिकांश जीवन भारत के बाहर व्यतीत हुआ, फिर भी उनका स्थान हमारे महान संतों में है। उनका कार्य पहले से अधिक बढ़ और चमक रहा है, और ईश्वर की तीर्थ यात्रा के पथ पर हर दिशा से लोगों को आकर्षित कर रहा है।

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