Monday, March 10, 2014



वैज्ञानिकों को ऐसी चार नई मानव-निर्मित गैसों का पता चला है, जो ओज़ोन परत को नुक़सान पहुँचा रही हैं.
इनमें से दो गैसें ओज़ोन परत को इतनी तेज़ी से नुकसान पहुँचा रही हैं कि वैज्ञानिक इसे लेकर काफ़ी चिंतित हैं.
ज़मीन से 15 से 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर वायुमंडल में पाई जाने वाली ओज़ोन की परत मनुष्यों और जानवरों को हानिकारक अल्ट्रावायलट (यूवी) किरणों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यूवी किरणों से मनुष्यों में कैंसर होता है. जानवरों की प्रजनन क्षमता पर भी इनका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
क्लिक करें ओज़ोन परत में बढ़ते छेद के कारण 1980 के दशक के मध्य से क्लोरोफ़्लोरोकार्बन (सीएफ़सी) गैस के उत्पादन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.

गैस की उत्पत्ति

"हमारे शोध से पता चलता है कि ये चार गैसें 1960 तक वायुमंडल में नहीं थीं. इससे पता चलता है कि ये मानव निर्मित गैसें हैं."
डॉक्टर जॉनसन लाउबे, प्रमुख शोधकर्ता
सीएफ़सी से मिलती-जुलती इन गैसों की उत्पत्ति का सटीक कारण अभी भी रहस्य है.
सबसे पहले ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के वैज्ञानिकों ने 1985 में अंटार्कटिक के ऊपर ओज़ोन परत में एक बड़े छेद की खोज की थी.
वैज्ञानिकों को पता चला कि इसके लिए सीएफ़सी गैस ज़िम्मेदार है, जिसकी खोज 1920 में हुई थी. इस गैस का प्रयोग रेफ्रिज़रेटर, हेयरस्प्रे और डिऑडरेंट बनाने वाले प्रोपेलेंट में अधिकता से होता है.
सीएफ़सी पर नियंत्रण पाने के लिए 1987 में दुनिया के देशों में सहमति बनी और इसके उत्पादन को नियंत्रित करने के लिए मांट्रियल संधि अस्तित्व में आई.
साल 2010 में सीएफ़सी के उत्पादन पर वैश्विक स्तर पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया.

इंसान ने बनाया

ओज़ोन परत में छेद
ओज़ोन परत में छेद का पता सबसे पहले ब्रितानी वैज्ञानिकों ने 1985 में लगाया था.
इन चार नई क्लिक करें गैसों की मौज़ूदगी का पता लगाया है ईस्ट एंजिलिया विश्वविद्लय के शोधकर्ताओं ने.
इनमें से तीन गैसें सीएफ़सी हैं और एक गैस हाइड्रोक्लोरोफ़्लोरोकार्बन (एचसीएफ़सी) है, यह गैस भी ओज़ोन परत को नुक़सान पहुँचा सकती है.
इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर जॉनसन लाउबे कहते हैं, ''हमारे शोध से पता चलता है कि ये चार गैसें 1960 तक वायुमंडल में नहीं थीं यानी ये मानवनिर्मित गैसें हैं.''
वैज्ञानिक ध्रुवीय बर्फ़ से निकाली गई हवा के विश्लेषण से पता लगा सकते हैं कि आज से 100 साल पहले कैसा वायुमंडल कैसा था.
शोधकर्ताओं ने इनकी तुलना वर्तमान वायुमंडल में पाई जाने वाली गैसों के नमूने से भी की. इसके लिए तस्मानिया के दूर-दराज़ के इलाक़े से नमूने लाए गए.
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वायुमंडल में 74 हज़ार टन ऐसी गैस मौजूद हैं. इनमें से दो गैसें ओज़ोन परत में क्षरण की दर में उल्लेखनीय वृद्धि कर रही हैं.
डॉक्टर लाउबे कहते हैं, ''इन चार गैसों की पहचान बहुत चिंताजनक है, क्योंकि वो ओज़ोन परत के क्षरण में योगदान देंगी.''

बहुत बड़ा ख़तरा नहीं

वो कहते हैं, ''हम यह नहीं जानते कि इन नई गैसों का उत्सर्जन कहाँ से हो रहा है, इसकी जाँच की जानी चाहिए. कीटनाशक के निर्माण में उपयोग होने वाला कच्चा माल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अवयवों की धुलाई में काम आने वाले विलायक इसके संभावित स्रोत हो सकते हैं.''
वो कहते हैं कि ये तीन सीएफ़सी वायुमंडल में बहुत धीरे-धीरे नष्ट होते हैं. इसलिए अगर इनके उत्सर्जन को तत्काल प्रभाव से रोक भी दिया जाए, तो भी वो कई दशक तक वायुमंडल में बने रहेंगे.
वहीं अन्य वैज्ञानिकों का मानना है कि अभी इन गैसों की मात्रा कम है और इनसे अभी कोई तात्कालिक ख़तरा नहीं है लेकिन इनके स्रोत का पता लगाने की ज़रूरत है.
लीड्स विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर पाइरस फॉरेस्टर को कहते हैं, ''इस अध्ययन से पता चलता है कि ओज़ोन परत का क्षरण अभी भी पुरानी बात नहीं हुई है.''
वो कहते हैं, ''जो चार गैसें खोजी गई हैं, उनमें से सीएफ़सी-113ए ज़्यादा चिंता पैदा करने वाली प्रतीत हो रही है क्योंकि कहीं से इसका मामूली उत्सर्जन हो रहा है, लेकिन यह बढ़ता जा रहा है. हो सकता है कि यह कीटनाशकों के निर्माण से पैदा हो रही हो. हमें इसकी पहचान करनी चाहिए और इसका उत्पादन रोक देना चाहिए."

No comments: