Friday, October 8, 2010

समुद्र मंथन का विष
भगवान शिव ने पीया

विनय बिहारी सिंह


समुद्र मंथन के समय जब विष निकला तो उसके ताप और प्रभाव से देवता और राक्षस और देवता ही नहीं, पृथ्वी के सभी जीव- जंतु व्याकुल हो गए। कई लोगों ने सोचा कि यह विष समुद्र में ही रहता तो अच्छा था। बाहर क्यों आया? जब जीव तड़पने लगे तो देवता भगवान शंकर के पास गए और कहा कि वे सभी जीवों पर दया कर कोई उपाय करें। भगवान शिव दया की मूर्ति कहे जाते हैं। उन्होंने इस भयंकर विष को पी लिया। लेकिन इसे गले के नीचे नहीं उतरने दिया। सभी जानते हैं शिव जी सर्वोच्च योगी हैं। गले में विष धारण करने के कारण उनका गला नीला पड़ गया। इसीलिए उनका नाम नीलकंठ पड़ गया। जिस विष से समूची पृथ्वी त्राहि त्राहि कर रही थी, उसे भगवान शिव ने मुस्करा कर पी लिया। सिर्फ इसलिए कि पृथ्वी के जीव- जंतु आराम से रहें।
हम भी जब अपने भीतर आत्ममंथन करते हैं तो हमारे भीतर की खराब चीजें बाहर निकलती हैं जिनसे हम बेहद परेशान रहते हैं और सोचते हैं कि यह कैसे खत्म हो। ऐसे में हम भगवान शिव को याद करते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे हमारा विषय, विकार मिटा दें और हमारा अंतःकरण निर्मल और शुद्ध कर दें ताकि उसमें वे स्वयं आकर विराजमान हों। ऐसे दयामय भगवान शिव को महामृत्युंजय कहते हैं। उनके नामजप से शुभ ही शुभ होता है।

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