Thursday, August 9, 2012

रहीम के दोहे

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अगाय॥ देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन। लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन॥ अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम। सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम॥ गरज आपनी आप सों रहिमन कहीं न जाया। जैसे कुल की कुल वधू पर घर जात लजाया॥ छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात। कह ‘रहीम’ हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥ तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥ खीरा को मुंह काटि के, मलियत लोन लगाय। रहिमन करुए मुखन को, चहियत इहै सजाय॥

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