Thursday, March 3, 2011

भगवान शिव का एक प्रेमी




विनय बिहारी सिंह

शिव जी का एक अनन्य प्रेमी था। वह जिस लोटे से नहाता धोता था, उसी से भगवान शिव को जल चढ़ाता था। आमतौर पर जल चढ़ाने के लिए लोग अलग पात्र रखते हैं, जो अत्यंत पवित्र माना जाता है। भगवान शिव उस भक्त से बड़े प्रसन्न रहते थे। एक दिन माता पार्वती ने पूछा- आप इस भक्त पर इतने प्रसन्न क्यों रहते हैं। वह तो जिस लोटे से खाता- पीता, नहाता है, उसी से आपको जल भी चढ़ाता है। दूसरे भक्त इससे भी ज्यादा पवित्रता से आपकी पूजा- अर्चना करते हैं, लेकिन उनके प्रति तो आप इतनी कृपा नहीं दिखाते? भगवान शिव ने कहा- ठीक है, चलो मैं इसका कारण तुम्हें बता देता हूं। पार्वती जी के साथ वे पृथ्वी लोक में आए। जिस मंदिर में उनका प्रिय भक्त जल चढ़ाने आता था, वहां पहुंचे। भक्त शिवलिंग पर जल चढ़ा रहे थे। भगवान शिव का प्रिय भक्त भी आया। तभी हल्ला हुआ कि भूकंप आ रहा है। सारे जल चढ़ाने वाले जी- जान लगा कर भागने लगे। लेकिन शिव जी का प्रिय भक्त शिवलिंग को अपने हाथों से घेर लिया और कहने लगा- हे भगवान, मुझे चाहे कुछ भी हो जाए, लेकिन आपके शिवलिंग को कुछ न हो। मेरे प्राणों से भी प्रिय है यह शिवलिंग और यह मंदिर। माता पार्वती यह देख कर समझ गईं कि शिव जी इस भक्त का क्यों आदर करते हैं। यह व्यक्ति अपने प्राणों की परवाह न कर भगवान के लिए तड़प रहा है। जबकि सारे लोग अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे हैं।
हममें से ज्यादा लोग भगवान शिव से तरह- तरह की चीजें मांगते हैं। धन, नौकरी, ऐश्वर्य, नाम और सुख। लेकिन ऐसे भी भक्त हैं जो कुछ नहीं मांगते। वे सिर्फ भगवान शिव को प्यार करते हैं और कहते हैं- भगवान, सिर्फ एक ही चीज की व्यवस्था कर दीजिए। भगवान पूछते हैं- क्या? तो अनन्य भक्त कहते हैं- आपके प्रति मेरा प्रेम, मेरी भक्ति लगातार बढ़ती रहे। मैं आपके संपर्क के आनंद में लगातार रहूं। यह प्रेम सदा के लिए बना रहे। बस। ऊं नमः शिवाय

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