विनय बिहारी सिंह
कभी आपने सोचा है कि आपके भीतर अनेक रहस्य छुपे हुए हैं? अगर नहीं तो अब भी समय है। महात्माओं ने कहा है- ईश्वर का साम्राज्य आपके भीतर है। कविता है न- कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढ़े बन माहिं।। मृग या हिरण की नाभि में कस्तूरी होती है। जब यह कस्तूरी परिपक्व हो जाती है तो इससे एक तीव्र मोहक सुगंध निकलती है। हिरण को लगता है कि यह सुगंध कहीं बाहर से आ रही है। वह वन में जहां- तहां दौड़ लगाता रहता है। लेकिन उसे पता नहीं चलता कि यह मुग्धकारी सुगंध तो उसकी नाभि से ही आ रही है। ऋषियों ने कहा है- हमारे भीतर भी छह चक्र हैं। इनमें से ऊपर के तीन चक्रों को जाग्रत कर दिया जाए तो ईश्वर का रस झरने लगता है। यह मृग या हिरण के कस्तूरी से अनंत गुना प्रभावकारी है। इससे गंध नहीं निकलती। ईश्वर का रस मिलता है। लेकिन अजब बात यह है कि हम सब बाहर की तरफ ज्यादा देखते हैं। बाहर की घटनाओं और लोगों से ज्यादा प्रभावित होते हैं। अपने भीतर क्षण भर के लिए भी झांकना नहीं चाहते। कई संतों ने तो कहा है कि अपनी आंखें बंद कीजिए और हृदय चक्र पर ध्यान कीजिए। वर्षों तक ध्यान करने के बाद आपका ध्यान गहरा होगा।  ध्यान गहरा होते ही, आपको ईश्वरानुभूति होगी। लेकिन कई लोग ध्यान के समय नाना प्रकार की बातें सोचने लगते हैं। ध्यान में सोचना कुछ नहीं है। बस, ईश्वर की शऱण में चले जाना है। ईश्वर के चरणों में आत्म समर्पण कर देना है। कहना है- हे प्रभु, यह लो मेरा शरीर, मेरा मन, मेरी बुद्धि और मेरी आत्मा। सब कुछ तुम्हारा ही है। मुझे बस अपना दिव्य प्रेम दे दो। मेरे लिए वही पर्याप्त है। 
 
 
 
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