Monday, November 1, 2010

भगवत गीता यानी भगवान का गीत

विनय बिहारी सिंह


भगवत गीता, भगवान का गीत है। रामकृष्ण परमहंस कहते थे- दस बार लगातार गीता, गीता कहने से त्यागी, त्यागी हो जाता है। गीता का सार है- त्याग। किसका त्याग- लोभ, मोह, अहंकार, क्रोध, काम, मद, ईर्ष्या और आलस्य इत्यादि का त्याग। उच्च कोटि के संत परमहंस योगानंद जी ने गीता का जो भाष्य लिखा है, वह अद्भुत है। उन्होंने कहा है- कौरव हमारे भीतर की वासनाएं, कामनाएं हैं और पांडव हमारे भीतर का सात्विक भाव। कौरवों व पांडवों के बीच युद्ध यानी हमारे भीतर की कामनाओं, वासनाओं यानी माया और सात्विकता के बीच युद्ध। सांसारिक बंधन एक तरफ खींचता है और वैराग्य एक तरफ। मनुष्य इन्हीं दोनों से लड़ता है। लेकिन अगर हमारे भीतर सात्विकता का प्राधान्य हो गया तो हमारे भीतर का पांडव जीत जाता है। इस दीपावली पर हमें अपने अंदर के बचे- खुचे अंधकार को खत्म कर देना है। वहां ज्योंही ईश्वर का प्रकाश जाएगा, हमारा अंतःकरण दिव्य ज्योति से जगमगा जाएगा। हम अपने घरों को जगमगाने के साथ अपने अंतःकरण को भी आलोकित करें और इस दीपावली को और ज्यादा आनंदमय बनाएं।

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