Saturday, August 28, 2010

Life and Wrok of Acharya Swami Bidyanandaji


Life and Wrok of Acharya Swami Bidyanandaji

Friday, August 27, 2010

The Great Yogi's words-

Why should God surrender Himself easily to you? You who work so hard for money and so little for divine realization! The Hindu saints tell us that if we would give so short a time as 24 hours to continuous, uninterrupted prayer, the Lord would appear before us or make Himself known to us in some way. If we devote even one hour daily to deep meditation on Him, in time He will come to us.
Sri Sri Paramahansa Yogananda, “Sayings of Paramahansa Yogananda”

Wednesday, August 25, 2010

हरी सब्ज़ियाँ दूर रखे डायबिटीज़ से

हरी सब्ज़ियाँ

शोधकर्ताओं ने कहा है कि सब्ज़ियों के साथ पूरा भोजन भी लेना चाहिए

शोधकर्ताओं का कहना है कि हर दिन ढेर सारी हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ खाने से डायबिटीज़ यानी मधुमेह होने के ख़तरे से बचा जा सकता है.

इस शोध पर टिप्पणी करते हुए जनस्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा है कि इस तरह के शोध से हर दिन पाँच तरह के फल और सब्ज़ियाँ खाने के महत्व को कम नहीं किया जाना चाहिए.

ब्रिटेन में सरकार की ओर से इस संदेश को लोगों तक पहुँचाने के लिए ख़ासी मशक्कत की गई है कि हर व्यक्ति को हर दिन पाँच तरह के फल खाने चाहिए.

अधिकारियों का कहना है कि अभी भी आधे से ज़्यादा ब्रितानी तीन फल और सब्ज़ियाँ भर खाते हैं.

लेकिन ताज़ा शोध में कहा गया है कि अगर आप पर्याप्त मात्रा में हरी सब्ज़ियाँ खाते हैं, मसलन पालक, पत्तागोभी और सलाद वाली पत्तियाँ तो आप डायबिटीज़ होने के ख़तरे से बच सकते हैं.

इसका असर महत्वपूर्ण है क्योंकि अक्सर डायबिटीज़ और हृदय रोग साथ-साथ ही होते हैं.

यह माना जाता है कि हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ मैग्निशियम और विटामिन जैसी एंटी-ऑक्सीडेंट का अच्छा स्रोत होती हैं.

लेकिन शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि सब्जियों का सही फ़ायदा हो इसके लिए ज़रुरी है कि आप अपना भोजन पूरा लेते रहें और इसके लिए किसी विकल्प की तलाश न करें. (coutesy- BBC HINDI SERVICE)

Tuesday, August 24, 2010

शिव के भक्त राम

विनय बिहारी सिंह

रावण से युद्ध करने और समुद्र पार करने से पहले भगवान राम ने शिव जी की विधिवत पूजा की थी। इस स्थान का नाम रामेश्वरम है। रामेश्वर यानी राम के ईश्वर। एक और प्रसंग- सीता जी स्वयंवर के पहले माता पार्वती की पूजा करती हैं और कामना करती हैं कि पति के रूप में उन्हें राम जी ही मिलें। उधर शिवपुराण में भगवान शिव ने कहा है कि जो व्यक्ति विष्णु भगवान नहीं मानता और मेरी पूजा करता है, वह अग्यानी है। रामचरितमानस में ही भगवान राम ने कहा है-

शिवद्रोही मम दास कहावा, सोई नर सपनेहुं मोहिं न पावा

यानी शिव जी से दूरी रखने वाला और मेरी भक्ति करने वाला मुझे सपने में भी नहीं पा सकता। इस तरह से सिद्ध होता है कि भगवान राम या कृष्ण या शिव एक ही हैं। उनमें कोई भेद नहीं है। भगवान एक ही हैं, उनके रूप अलग- अलग हैं। कई लोग मां काली को ही भगवान कहते हैं। वे भी ठीक कहते हैं क्यों उनके लिए मां काली ही भगवान हैं। रूप अलग- अलग हो सकते हैं लेकिन भगवान एक ही हैं। रामकृष्ण परमहंस कहते थे- राम, कृष्ण, शिव, दुर्गा, काली भगवान के ही अलग- अलग रूप हैं। आप चाहे जिसकी भी पूजा करें- वह जाएगा भगवान को ही। भगवान ही अनंत कोटि ब्रह्मांड के मालिक हैं। वही इस सृष्टि को चला रहे हैं।

Monday, August 23, 2010

सोचने से ही खुल जाएगा कंप्यूटर

विनय बिहारी सिंह

वैग्यानिक ऐसा कंप्यूटर बनाने जा रहे हैं जिसके लिए माउस की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी। वह आपके सोच के हिसाब से चलेगा। मान लीजिए आप गूगल का सर्च इंजन चाहते हैं तो बस उसके बारे में सोचिए। बस, तुरंत आपके कंप्यूटर के स्क्रीन पर गूगल आ जाएगा। वैग्यानिक मनुष्य के सोच के पैटर्न को माप रहे हैं। यानी मनुष्य आमतौर पर कंप्यूटर पर बैठने के बाद क्या- क्या खोजता और देखता है, कौन से ई मेल ज्यादातर खोले जाते हैं इसका तहकीकात कर रहे हैं। इसके बाद यह संवेदनशील कंप्यूटर तैयार कर दिया जाएगा। आप जी मेल या याहू मेल खोलना चाहेंगे और वह आपके सोचने भर से अपने आप खुल जाएगा। फिर आप सोच कर ही यूजर्स नेम में ई मेल एड्रेस भरिए और फिर पासवर्ड। आपका ई मेल खुल जाएगा। जो काम पुराने समय में ऋषि करते थे उसका आधा भी यह नहीं है। हमारे ऋषि तो एक सेकेंड में पूरे ब्रह्मांड में एक जगह से दूसरी जगह पर चले जाते थे। वे अगर कश्मीर में हैं तो कन्याकुमारी जाने में एक सेकेंड लगता था। या एक ही समय में वे दो जगहों पर उपस्थित हो सकते थे।

Saturday, August 21, 2010

सती सावित्री पर फिल्म

विनय बिहारी सिंह


बांग्ला भाषा में एक फिल्म हाल ही में रिलीज हुई है- महासती सावित्री। हिंदी में धार्मिक फिल्में फिलहाल नहीं बन रही हैं। लेकिन जब मैं किशोर वय का था तो हिंदी में धार्मिक फिल्में खूब बनती थीं। भक्त प्रह्लाद और संत ग्यानेश्वर, हरि दर्शन, हर- हर महादेव आदि फिल्में देख कर अच्छा लगता था। भीड़ भी खूब होती थी। लेकिन आजकल ऐसी फिल्मों का अभाव खटकता है। लेकिन बांग्ला में- महासती सावित्री नाम की फिल्म आई है। एक राजा की बेटी सावित्री विलक्षण जीवट, आस्था और भक्ति का प्रतीक थी। उसकी निष्ठा इतनी मजबूत थी कि उससे यमराज भी हिल गए। धार्मिक कथाएं हमें बहुत ताकत देती हैं। सती सावित्री के पति सत्यवान की युवावस्था में ही मृत्यु हो गई। पति की उम्र उतनी ही थी। यह बात सावित्री शादी के पहले से जानती थी। जिस दिन पति की मृत्यु होनी थी, उसके चार दिन पहले से ही वह अग्निकुंड में होम कर ध्यान में बैठ गई। तीन दिन और तीन रात उसने कुछ नहीं खाया पीया और ध्यान में बैठी रही। चौथे दिन सावित्री का गरीब पति (सावित्री ने मां- बाप को राजी कर गरीब लेकिन घनघोर धार्मिक परिवार में शादी की थी। वह यह भी जानती थी कि युवावस्था में सत्यवान की मृत्यु का योग है, फिर भी उसके गुणों ने सावित्री को मोहित कर दिया। ) जंगल में लकड़ी काटने गया। सावित्री जानती थी कि आज के ही दिन अनहोनी घटेगी। वह अपने पति के साथ जंगल में गई। थोड़ी देर बाद पति सत्यवान ने कहा कि उसे कमजोरी महसूस हो रही है। वह एक पेड़ की छाया के नीचे लेट गया। सावित्री ने अपने पति का सिर अपनी गोद में रख लिया। धीरे- धीरे वह सो गया। तभी मुकुट पहने यमराज वहां पहुंचे। सावित्री ने उनसे आदर के साथ पूछा- महाराज आप कौन हैं? यमराज ने अपना परिचय दिया और कहा कि तुम्हारे पति की मृत्यु हो गई है। मैं उसकी आत्मा को ले जाने आया हूं। देखते देखते यमराज, सत्यवान की आत्मा को ले चला। सावित्री भी यमराज के पीछे पीछे चली। यमराज लाख कहता कि वह लौट जाए लेकिन सावित्री ने कहा कि पति के साथ चलना उसे अच्छा लग रहा है। इसलिए यमराज उसे कुछ दूर चलने दें। सावित्री के सद्गुणों और व्यवहार से प्रसन्न हो कर यमराज ने उसे चार वर मांगने को कहा। सावित्री ने सबसे पहले अपने श्वसुर के लिए स्वास्थ्य मांगा। दूसरा वर श्वसुर का खोया साम्राज्य, तीसरा वर अपने पिता के लिए सौ संतानें मांग लिया।सावित्री के तीन वर मांगने के बाद यमराज चकित था। आखिर यह कैसी महिला है कि अपने लिए कुछ नहीं मांग रही है। तभी सावित्री ने कहा- वर दीजिए कि मेरे सौ पुत्र हों। यमराज ने इसे भी मान लिया और कहा- तथास्तु। यमराज ने कहा- अब तो लौट जाओ बेटी। सावित्री बोली- कैसे लौट जाऊं भगवन। आपने मुझे सौ पुत्र का वर दिया और पति की आत्मा लिए जा रहे हैं। मेरे पति का जीवन लौटाएंगे तभी तो मैं पुत्रवान होऊंगी? यमराज सावित्री से हार गया। सावित्री का व्यवहार, उसकी विनम्रता और उसकी बुद्धिमत्ता विलक्षण थी। उसने सत्यवान की आत्मा उसके शरीर में लौटा दी और वर दिया कि सत्यवान ४०० वर्षों तक जीवित रहेगा और धन धान्य से परिपूर्ण होगा। तुम उसके साथ पर्याप्त सुख भोगोगी। सावित्री वापस पति के शरीर के पास गई और उसके सिर को गोद में रखा। सत्यवान ने आंखें खोली। सावित्री ने अपने पति को अपने प्रयासों से जीवित किया। यह कथा महाभारत के समय की है। ऋषि मार्कंडेय जी यह कथा द्रौपदी को सुना रहे हैं। भारतीय संस्कृति में सावित्री को जीवट, साहस और विलक्षण प्रतिभा के पर्याय के रूप में देखा जाता है। जो यमराज को जीत ले वह साधारण मनुष्य तो नहीं ही होगा। सावित्री को इसीलिए आदर से देखा जाता है।

Friday, August 20, 2010

शांति से ओतप्रोत एक आश्रम

विनय बिहारी सिंह


पिछले दो दिन मैंने पश्चिम बंगाल के शहर पुरुलिया के एक अत्यंत शांत आश्रम में बिताए। दो साल पहले तक विख्यात योगी परमहंस योगानंद के सिद्ध शिष्य स्वामी विद्यानंद जी रहते थे। अब वे शरीर में नहीं हैं। योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया के एक सन्यासी स्वामी कृष्णानंद जी वहां बीच- बीच में आ कर रहते हैं। इन दिनों स्वामी कृष्णानंद जी वहीं पर हैं। संयोग ऐसा बना कि मैं पुरुलिया गया और इसी आश्रम में रहा। इसका नाम है- परमहंस योगानंद आश्रम। छोटा सा लेकिन अत्यंत मनोरम आश्रम। गुरु परमहंस योगानंद और परमगुरुओं भगवान श्रीकृष्ण, महावतार बाबाजी, लाहिड़ी महाशय, स्वामी श्री युक्तेश्वर जी की सजीव मूर्तियों वाला मंदिर देख कर मैं देर तक वहां बैठा रहा। ऊपर वाले एक कमरे में स्वामी विद्यानंद जी की सजीव मूर्ति है। इस मूर्ति को देख कर कोई भी भ्रम में पड़ सकता है कि स्वामी जी आंखें बंद करके बैठे हैं। अगर मैं नहीं जानता कि स्वामी जी शरीर छोड़ चुके हैं तो मैं भी यही सोचता। अपने जीवन में मैंने ऐसी सजीव मूर्ति पहले कभी नहीं देखी थी। मैंने उस कलाकार को मन ही मन आभार जताया। स्वामी कृष्णानंद जी ने मुझे स्वामी प्रणवानंद जी की लिखी गीता की व्याख्या दी। यह दुर्लभ पुस्तक है। करीब ७० साल पहले लिखी इस पुस्तक को स्वामी प्रणवानंद जी ने लिखी थी। स्वामी कृष्णानंद जी ने पहल नहीं की होती तो शायद यह पुस्तक हमें और पढ़ने को नहीं मिलती क्योंकि इसके नए संस्करण नहीं छपे । स्वामी कृष्णानंद जी ने इस दुर्लभ पुस्तक को ढूंढ़ा और कठिन हिंदी शब्दों को योग्य व्यक्ति से सरल और बोधगम्य कराया। फिर अपने ट्रस्ट से प्रकाशित किया। गुरु परमहंस योगानंद जी ने योगी कथामृत में स्वामी प्रणवानंद जी के बारे में विस्तार से लिखा है। एक अध्याय प्रणवानंद जी पर ही है। इस पुस्तक के प्रति मेरी ललक बढ़ती जा रही थी। लेकिन कहीं पढ़ने को नहीं मिल पाई। अचानक स्वामी जी ने जब यह पुस्तक मुझे दी तो मेरे आनंद की सीमा नहीं रही। मैंने इसे अपना सौभाग्य माना। जो श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय के बारे में नहीं जानते उन्हें बताना आवश्यक है कि उन्नीसवीं शताब्दी में अपने गुरु के आदेश से उन्होंने ही क्रिया योग की दीक्षा देनी शुरू की ( उनके महान गुरु महावतार बाबाजी ने हिमालय में उन्हें दीक्षा दी थी)। योग की यह विलक्षण क्रिया है। इसके बारे में परमहंस योगानंद जी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक योगी कथामृत (आटोबायोग्राफी आफ अ योगी) में लिखा है। स्वामी विद्यानंद जी की एक अनन्य भक्त और पुत्री जैसी शिष्या ने यह आश्रम बनवा दिया था। उन्हें सभी मां कहते हैं। वे बिल्कुल शांत भाव से इस आश्रम के अपने कमरे में रहती हैं और ध्यान व पठन- पाठन में व्यस्त रहती हैं। मां से मैंने बातें कीं।
स्वामी विद्यानंद जी ने परमहंस योगानंद जी से तब दीक्षा ली थी जब वे कुछ दिनों के लिए अमेरिका से भारत आए थे। स्वामी जी ने पुरुलिया के पास के एक गांव लखनपुर में योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया का आश्रम बनवाया जो अत्यंत मनोहारी है। उन्होंने उस इलाके में स्कूल, इंटर कालेज और डिग्री कालेज बनवाए। परमहंस योगानंद जी ने जो गुरुकुल परंपरा का स्कूल- ब्रह्मचर्य विद्यालय- रांची में खोला उसी के अनुरूप स्वामी विद्यानंद जी ने यह विलक्षण काम किया। सिर्फ परोपकार के लिए। ताकि गुरु प्रसन्न हों, ईश्वर प्रसन्न हों। स्वामी विद्यानंद जी ९० वर्षों तक जीवित रहे और जीवन पर्यंत परोपकार, सेवा और मदद करते रहे। स्वामी कृष्णानंद जी को उन्होंने अपना काम सौंप दिया है। स्वामी कृष्णानंद जी ने इस आश्रम को और सेवा कार्य को चलाए रखा है। मैं स्वामी जी के लिए एक किताब ले कर गया था, जिसकी उन्हें जरूरत थी। स्वामी जी ने मुझे उपहारों से लाद दिया। यह मेरे जीवन का विलक्षण अनुभव था। वे सन्यासी हैं, लेकिन सिर्फ देना जानते हैं। मुझे उन्होंने जो उपहार दिए हैं, वे जीवन भर की थाती हैं

Tuesday, August 17, 2010

शक्ति की देवी मां दुर्गा

विनय बिहारी सिंह

आफिस से घर लौटते हुए मैं जिस रास्ते जाता हूं उसमें एक जगह विभिन्न त्यौहारों के लिए मूर्तियां बनाई जाती हैं। इन दिनों वहां दुर्गापूजा के लिए मूर्तियां बन रही हैं। दरअसल यह प्रक्रिया तीन महीने पहले ही शुरू हो गई थी। अब मूर्तियां पूरी तरह बन कर तैयार हो गई हैं। बस रंगाई बाकी है। लेकिन ये मूर्तियां बहुत ही सजीव लगती हैं। महिषासुर की मांसपेशियां लगती हैं मानो फौलाद की हैं। लेकिन मां भगवती का शेर उसकी छाती को फाड़ने वाला है। मां भगवती का सांप महिषासुर पर हमला कर रहा है। इसके अलावा मां स्वयं महिषासुर पर अपने सारे अस्त्र चला रही हैं। मां के दस हाथ हैं। यह मैं आते- जाते रोज देखता हूं। और हर बार बहुत अच्छा लगता है। मूर्तियों के स्टूडियों में कलाकार काम कर रहे होते हैं। चूंकि यह सड़क से भी देखा जा सकता है, इसलिए इनके बनने की प्रक्रिया देखी जा सकती है। मैंने सोचा मां दुर्गा के पास प्रत्यक्ष रूप से कोई सांप तो नहीं होता। तब सांप आया कहां से। फिर याद आया- मां दुर्गा तो भगवान शिव की पत्नी कही जाती हैं। अर्द्धांगिनी। भगवान शिव के गले में सांप है (हालांकि यह प्रतीकात्मक है) । हो सकता है, वही सांप यहां आ गया हो। आखिर महिषासुर को मारने के लिए सभी देवताओं ने अपने अस्त्र मां दुर्गा को दिए थे। भगवान शिव ने अपना त्रिशूल दिया। मां तो शिव जी की अर्द्धांगिनी हैं। हो सकता है वे सांप को भी साथ लिए आई हों। मैं जितनी बार इन मूर्तियों को देखता हूं, मन जगन्माता की लीलाओं पर चला जाता है। महिषासुर कहीं और नहीं है। वह हमारे भीतर बैठा है। चाहे हम पुरुष हों या स्त्री। महिषासुर हमारा अंधेरा पक्ष है। हमारा नकारात्मक प्रवितृयां यानी भय, क्रोध, हिंसा, ईर्ष्या, द्वेष, लोभ इत्यादि। अगर हमारे भीतर मां भगवती रहेंगी तो हमारे भीतर का महिषासुर मारा जाएगा। लेकिन अगर हम महिषासुर को ही पुष्ट करते रहेंगे, तो वह बलवान होता जाएगा और अंत में हमे ही खा जाएगा। इसीलिए दुर्गापूजा की जाती है। इस पूजा में मां से प्रार्थना की जाती है- मां, मेरी रक्षा करो। मेरे भीतर के अंधेरे को खत्म करो। मुझे पवित्र करो ताकि तुम्हारा दर्शन मैं हमेशा कर सकूं और अपना जीवन निर्भय व सुखी हो कर गुजार सकूं।

Monday, August 16, 2010

मित्रों,

संस्कृत भाषा की महानता पर

आज मुझे

रुटगर कोर्स्टेनहॉर्स्ट

का एक महत्वपूर्ण भाषण मिला है। रुटगर संस्कृत के प्रकांड

विद्वान हैं और आयरलैंड में संस्कृत पढ़ाते हैं। उनका कहना है कि सारी

भाषाएं समय के साथ बदली हैं। यह बदलाव भाषा को भ्रष्ट करता है।

लेकिन संस्कृत की गरिमा यह है कि वह प्रारंभ से जस की तस है।

संस्कृत

सभी भाषाओं की मां है। इसको पढ़ना खुद को समझदार और कुशल बनाना है। इसकी

ध्वनियां विलक्षण हैं।

अंग्रेजी में दिए गए इस भाषण का एक अंश आप भी पढ़ें।


The importance of Samskrit language


Rutger Kortenhorst


Samskrit stands out above all other languages for its beauty of sound, precision in pronunciation and reliability as well as thoroughness in every aspect of its structure. This is why it has never fundamentally changed unlike all other languages. It has had no need to change being the most perfect language of Mankind.

If we consider Shakespeare’s English, we realize how different and therefore difficult for us his English language was although it is just English from less than 500 years ago. We struggle with the meaning of Shakespeare’s English or that of the King James Bible. Go back a bit further and we don’t have a clue about the English from the time of Chaucer’s ‘Pilgrim’s Progress’ from around 700 AD. We cannot even call this English anymore and now rightly call it Anglo-Saxon. So English hadn’t even been born! All languages keep changing beyond recognition. They change because they are defective. The changes are in fact corruptions. They are born and die after seven or eight hundred years –about the lifetime of a Giant Redwood Tree- because after so much corruption they have no life left in them. Surprisingly there is one language in the world that does not have this short lifespan. Samskrit is the only exception. It is a never-dying constant. The reason for the constancy in Samskrit is that it is completely structured and thought out.

There is not a word that has been left out in its grammar or etymology, which means every word can be traced back to where it came from originally. This does not mean there is no room for new words either. Just as in English we use older concepts from Greek and Latin to express modern inventions like a television: ‘tele [far] – vision [seeing]’ or ‘compute –er’. Samskrit in fact specializes in making up compound words from smaller words and parts. The word ‘Sams - krita’ itself means ‘completely – made’.

So what advantages are there to a fundamentally unchanging language? What is advantageous about an unchanging friend, say? Are they reliable? What happens if you look at a text in Samskrit from thousands of years ago?

The exceptional features of Samskrit have been recognised for a few centuries all over the world, so you will find universities from many countries having a Samskrit faculty. Whether you go to Hawai, Cambridge or Harvard and even Trinity College Dublin has a seat for Samskrit –although it is vacant at present. May be one of your children will in time fill this position again?

Although India has been its custodian, Samskrit has had universal appeal for centuries. The wisdom carried by this language appeals to the West as we can see from Yoga and Ayurvedic Medicine as well as meditation techniques, and practical philosophies like Buddhism and most of what we use in the School of Philosophy. It supports, expands and enlightens rather than conflicts withlocal traditions and religions.

The precision of Samskrit stems from the unparalleled detail on how the actual sounds of the alphabet are structured and defined. The sounds have a particular place in the mouth, nose and throat that can be defined and will never change. This is why in Samskrit the letters are called the ‘Indestructibles’ [aksharáni]. Samskrit is the only language that has consciously laid out its sounds from first principles. (courtesy- respected Swami Krishnananda ji)

Saturday, August 14, 2010

(courtesy- BBC Hindi service)

भारत ने सुपरबग के दावे को ख़ारिज किया

बैक्टीरिया

वैज्ञानिकों ने कहा था कि सुपरबग भारत से आया है

भारत ने ब्रितानी वैज्ञानिकों के इस दावे को ख़ारिज कर दिया है जिसमें कहा गया था कि भारत से ब्रिटेन में ऐसा बैक्टीरिया आया है जिस पर एंटीबॉयोटिक्स का असर नहीं होता है.

भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना था कि इस सुपरबग बैक्टीरिया का भारत से संबंध जोड़ना उचित नहीं है.

स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसे भारत के ख़िलाफ़ 'दुष्प्रचार' क़रार दिया है.

भारत में गुरुवार को कई सांसदों ने इसे संसद में उठाया और इसे भारत के स्वास्थ्य पर्यटन उद्योग के ख़िलाफ़ 'षड्यंत्र' बताया.

इस सुपरबग बैक्टीरिया का भारत से संबंध जोड़ना उचित नहीं है. ये भारत के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार है- भारत का स्वास्थ्य मंत्रालय

भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने जारी एक बयान में ब्रितानी रिपोर्ट को 'सनसनीखेज़' बताया है .

इसके पहले ब्रिटेन में वैज्ञानिकों ने भारत और पाकिस्तान में पाए जाने वाले एक नए किस्म के बैक्टीरिया- सुपरबग की विश्व भर में कड़ी निगरानी का आहवान किया था.

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी कि इस बैक्टीरिया पर कारगर माने जाने वाले एंटीबायॉटिक्स काम नहीं करते और अब ये ब्रिटेन के अस्पतालों में भी दाख़िल हो गया है.

सुपरबग का दावा

मेडिकल पत्रिका लैंसेट में छपे एक अध्ययन में कहा गया था कि ब्रिटेन में ये बैक्टीरिया उन मरीज़ों के साथ आया है जो भारत या पाकिस्तान में कॉस्मेटिक सर्जरी जैसे उपचार करवा कर लौटे हैं.

मेडिकल पत्रिका लैंसेट के अनुसार ये बैक्टीरिया एनडीएम-1 नाम के एंज़ाइम को बनाता है और इस पर शक्तिशाली एंटीबायॉटिक्स असर नहीं करते.

जिन 37 संक्रमित मरीज़ों का अध्ययन किया गया उनमें 17 पिछले एक साल के भीतर भारत या पाकिस्तान के दौरे से लौटे थे.

इन मरीज़ों में से 14 भारत या पाकिस्तान के अस्पतालों में कॉस्मेटिक सर्जरी के लिए दाख़िल हुए थे.

ब्रिटेन में अबतक 50 मरीज़ इससे प्रभावित पाए गए हैं.

पत्रिका के मुताबिक इस बैक्टीरिया से लड़ने के लिए सख़्त निगरानी और नई दवाओं की ज़रुरत है.

Friday, August 13, 2010

पगला बाबा से मुलाकात

विनय बिहारी सिंह


मेरे एक परिचित ने एक साधु से मुलाकात की जिनका नाम है पगला बाबा। वे स्थाई रूप से एक जगह नहीं रहते हैं। यानी वे घुमंतू साधु हैं। उन्हें पगला बाबा क्यों कहा जाता है? मैंने पूछा। उनका कहना है- उनके कपड़े ढंग के नहीं हैं। कभी अपने शरीर के माप से बहुत बड़ी कमीज पहन लेते हैं तो कभी धोती के बदले लंगोट और उसके ऊपर झोला जैसा कुर्ता। इसीलिए उनका नाम पड़ गया है- पगला बाबा। लेकिन वे हैं उच्चकोटि के साधु। एक दिन ऐसे ही एक मंदिर के बाहर कुछ परिचित लोगों के साथ वे बैठे हुए थे। एक व्यक्ति ने उनसे पूछा- हमारे जिन प्रिय लोगों की मृत्यु हो चुकी है वे कहां हैं? पगला बाबा ने कहा- वे लोग पृथ्वी पर जन्म लेने से पहले कहां थे? वे परिचित या आत्मीय तो पृथ्वी पर आने के बाद हुए। यह आत्मा कभी नहीं मरती। सिर्फ देह मरती है। तो जो आपकी आत्मीय थी वह देह थी। अगले जन्म में वह किसी और के घर जन्म लेगी। हो सकता है किसी अन्य देश में जन्म ले। उसके माता- पिता, भाई- बहन, मित्र, रिश्तेदार कोई और लोग हों। मृत्यु लोक एक स्वप्न की तरह है। इसके प्रपंचों में बहुत ज्यादा दिमाग नहीं खपाना चाहिए। इसलिए इस चक्कर में न पड़ो कि जो आत्मीय इस दुनिया से जा चुके हैं, वे अभी कहां होंगे। परमहंस योगानंद ने कहा है- यह दुनिया एक स्कूल है। इसमें हम सबक सीखने आए हैं। सबक क्या है? हम यहां ईश्वर की प्राप्ति के लिए आए हैं। लेकिन अनेक लोग यह भूल कर समझते हैं कि वे पैसा कमाने, देह सुख भोगने आए हैं। यहीं गड़बड़ी हो जाती है। क्या करने आए थे और क्या करने लगे। ईश्वर हमसे इतना प्रेम करते हैं। हम उन्हें क्यों भूलें? क्यों नहीं सबसे ज्यादा उन्हीं से प्रेम करें? अगर नहीं करेंगे तो इसमें हमारा ही घाटा है। पगला बाबा बोलते जा रहे थे- ईश्वर की सृष्टि कितनी अद्भुत है। जब सृष्टि इतनी अद्भुत है तो स्रष्टा कितना अद्भुत होगा? सोचिए। तब लगेगा कि हम ईश्वर को भूल कर कितनी बड़ी चीज खो रहे हैं। सब कुछ तो ईश्वर ही है। उसकी शरण में जाइए और अपने सारे दुखों से छुटकारा पाइए।

Thursday, August 12, 2010


एक साधु से मुलाकात

विनय बिहारी सिंह


पिछले दिनों एक साधु से मुलाकात हुई। वे अपने शिष्यों को बता रहे थे- चंचल मन से ईश्वर से संपर्क नहीं हो सकता। जब तक आप शांत हो कर नहीं बैठेंगे, ध्यान नहीं होगा। ध्यान का अर्थ है ईश्वर में लय। अगर आपका मन एकाग्र नहीं होता तो आपका जीवन कष्टमय है। सफलता की कुंजी है- एकाग्रता। अगर चंचल मन के वश में आप हैं तो आपका भला नहीं हो सकता। आप हमेशा तनाव में रहेंगे। छोटी छोटी बातों से आप तनाव में आ जाएंगे। थोड़ा सा कष्ट भी आपको बड़ा लगने लगेगा। लेकिन ज्योंही आपका दिमाग कंट्रोल में आ जाएगा, आपका जीवन ही बदल जाएगा। तब पास बैठे एक आदमी ने पूछा- बाबा, कोशिश तो बहुत करते हैं लेकिन ज्योंही एक मिनट बीतता है मेरा ध्यान भगवान से हट कर संसार के किसी अन्य विषय पर चला जाता है। साधु ने उत्तर दिया- आपने मन को बेकाबू छोड़ दिया है। वर्षों से मन ऐसा कर रहा है। अचानक अपनी आदत कैसे बदल देगा? उसे धीरे- धीरे काबू में लाइए। बार- बार, बार- बार मन को खींच कर भगवान में लगाइए। हार मत मानिए। हो सकता है इसमें आपको दो- चार साल लग जाएं। लेकिन कोशिश में लगे रहिए। चंचल मन तो खुद ही कमजोर है। अगर आप उसके वश में आ गए तो आप उससे भी कमजोर साबित हो गए। इसलिए हमेशा मन को काबू में रखे रहिए। वह कहे कि मिठाई खानी है तो आप कहिए- आज नहीं। यह बहुत छोटी बात है। लेकिन सेल्फ कंट्रोल ऐसी ही छोटी बात से शुरू होता है। जब मन काबू में हो जाएगा तो आप यह नहीं कहेंगे कि मन एक मिनट ही ठहरता है। बाकी समय कूदता रहता है। उसे ठहरने का अभ्यास कराइए। प्यार से। जब वह भगवान पर ठहर जाएगा तो आप कहेंगे- हां, सच ही तो है। भगवान की कृपा हमेशा बरस रही है। बस महसूस करने वाला होना चाहिए। ग्रहण करने वाला होना चाहिए। और ग्रहण तो तभी होगा- जब मन शांत होगा। मन देर तक ईश्वर पर ठहरेगा।

Wednesday, August 11, 2010

'भारत-पाक' बैक्टीरिया

पर सख़्त निगरानी

बैक्टीरिया

वैज्ञानिकों ने एनडीएम-1 की सख़्त निगरानी का आहवान किया है.

ब्रिटेन में वैज्ञानिकों ने भारत और पाकिस्तान में पाए जाने वाले एक नए किस्म के बैक्टीरिया - सुपरबग - की विश्व भर में सख़्त निगरानी का आहवान किया है.

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इस बैक्टीरिया पर कारगर माने जाने वाले एंटी-बायोटिक्स काम नहीं करते और अब ये ब्रिटेन के अस्पतालों में भी दाख़िल हो गया है.

मेडिकल पत्रिका लैंसेट में छपे एक अध्ययन में कहा गया है कि ब्रिटेन में ये बैक्टीरिया उन मरीज़ों के साथ आया है जो भारत या पाकिस्तान में कॉस्मेटिक सर्जरी जैसे उपचार करवा कर लौटे हैं.

मेडिकल पत्रिका लैंसेट के अनुसार ये बैक्टीरिया एनडीएम-1 नाम के एंज़ाइम को बनाता है और इस पर शक्तिशाली एंटी-बायॉटिक्स असर नहीं करते.

बैक्टीरिया का ख़ौफ़

बैक्टीरिया

  • भारत और पाकिस्तान से इलाज करवा कर आए मरीज़ ज़्यादा प्रभावित
  • बैक्टीरिया एनडीएम-1 नामक एंज़ाइम को पैदा करता है
  • एनडीएम-1 पर एंटी-बायॉटिक्स का असर नहीं
  • ब्रिटेन में अब तक 50 मरीज़ प्रभावित
  • अमरीका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और नीदरलैंड्स में भी पाए गए कुछ मामले

जिन 37 संक्रमित मरीज़ों का अध्ययन किया गया उनमें 17 पिछले एक साल के भीतर भारत या पाकिस्तान के दौरे से लौटे थे. इन मरीज़ों में से 14 भारत या पाकिस्तान के अस्पतालों में कॉस्मेटिक सर्जरी के लिए दाख़िल हुए थे.

ब्रिटेन में अबतक 50 मरीज़ इससे प्रभावित पाए गए हैं. पत्रिका के मुताबिक इस बैक्टीरिया से लड़ने के लिए सख़्त निगरानी और नई दवाओं की ज़रुरत है.

‘एंटी-बायॉटिक्स का असर नहीं’

एनडीएम-1 एंज़ाइम अलग-अलग बैक्टीरिया के अंदर प्रवास कर सकता है जिस कारण ये कार्बापेनेम्स जैसे सबसे ताक़तवर एंटी-बायॉटिक्स से भी काबू में नहीं आता.

जानकारों को डर है कि एनडीएम-1 अब अन्य प्रकार के बैक्टीरिया में प्रवेश कर सकता है जो पहले से ही कई किस्म के एंटी-बायॉटिक्स से प्रतिरोध विकसित कर चुके हैं.

और आख़िर में ये ऐसा संक्रमण पैदा कर सकता है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलेगा. ऐसी स्थिती में इसका उपचार लगभग असंभव हो जाएगा.

एनडीएम-1 के संक्रमण के कुछ उदाहरण अमरीका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और नीदरलैंड्स से भी सामने आए हैं. अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ता कह रहे हैं कि एनडीएम-1 एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या का रुप धारण कर सकता है.

ब्रिटेन के अस्पतालों में ये संक्रमण एक मरीज़ से मरीज़ तक पहुंचना शुरु हो चुका है. विशेषज्ञों के मुताबिक जो भी मरीज़ इससे प्रभावित हैं उन्हें अन्य मरीज़ों से तुरंत अलग कर देना होगा.

Tuesday, August 10, 2010

मित्रों योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया/ सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप का विश्व स्तरीय महासम्मेलन अमेरिका में चल रहा है।
इसमें संस्था से जुड़े संतों ने बहुमूल्य विचार व्यक्त किए हैं। यहां गुरु के बारे में सिस्टर प्रीति के प्रवचन का एक हिस्सा डाक्टर आशीष महोबिया के सौजन्य से दिया जा रहा है।



Guru is He whom God appoints to lead you out of darkness into the land of eternal light.

God uses the Guru to attract and guide lost souls back to God. The Guru plays a part in God’s divine plan for each of us.

The Guru extends His hand to act as a personal guide. He holds a light to guide the way, offering encouragement each step of the way.

We may have many teachers, but only one Guru.

We have to take the Guru’s hand and allow Him to guide us. We have to be ready to accept our Guru.

Prem-Avatar – divine incarnation of love. Prem=love, Avatar = soul who attains union with spirit and returns to earth to help mankind.

“O I will come again and again… if need be a trillion times as long as I know one stray brother is left behind.” Master’s promise to us.

The Guru loves us just as we are right now. Does the mother love the baby any less because he doesn’t know how to walk yet? We do not have to earn the Guru’s love. Our shortcomings do not bother the Guru. The Guru focuses on the divine potential of each disciple.

Jesus reached out with compassion and understanding to his disciples. He offered his unconditional love to all who were receptive. Jesus saw a divine strength in Peter to build a foundation for his teachings. His love and faith in Peter was unchanged, even though Peter denied him three times. Even Judas was not forsaken by Jesus. Jesus had long before accepted Judas as a disciple. Judas earned salvation in India in the 20th century from Jesus.

Ordinary love is selfish. Divine love is without condition, boundary and change.

“The Guru’s Love” – a poem written by a westerner in the 1950s… “You may come to him for a few seconds… his love is unchanging…”

Precious unchanging love is eternal. We hold a secure place in the relationship incarnation after incarnation. Guru watches over us from birth to death. He is calling to our souls.

Babaji to Lahiri Mahasaya: “Though you lost sight of me… never did I lose sight of you… I followed you like a mother following her young.”

Eternal and unconditional. The Divine love and friendship between Guru and disciple is eternal and withouth condition. Human love often contains conditions.

Sri Yukteswar to Master: “I give you my unconditional love.” Master was received back by Sri Yukteswar after he left him. Sri Yukteswar: “I do not expect anything for anyone… so then actions can not be in opposition to me. I am happy only in your true happiness.”

“A new commandment I give unto men – that ye loved one another as I have loved you. ~ Jesus’ to his disciples.

“Only love can take my place.” Master’s promise to Ma, but words meant for all of us.

“Lord, Thou has given this monk a large family.” ~ last line in AY Master thought of convocation as a large family.

The Guru’s love is also personal – the Guru/Disciple relationship is personal. Sometimes it’s hard to feel in our hearts that Master came for us. The Guru extends his hand to each disciple personally.

We deepen our personal relationship with the Guru by feeling he is always by our side.

Each disciple has a personal story to tell about how Master came into their lives. The Guru’s love embraces every disciple. Never doubt your Guru’s love.

How can each of us experience the Guru’s love and friendship in a tangible way? How can we deepen our relationship? We have to start where we are right now and build on that relationship. Some of us are motivated by feeling, some by reason. We have to nurture the relationship each day. There is great joy and comfort in saying the Guru’s affirmations.

When one has found one’s Guru, one should have unconditional devotion to the Guru.

Both head and heart has a place in all relationships. A mutual give and take of love and trust and loyalty.

There must be a foundation of give and take. The Guru’s hand is always extended to the disciple. The more we reach out, the more we open ourselves to receive his love. By giving our heart’s devotion to the Guru and by receiving the Guru’s love in return, we know what it’s like to love God. Love and friendship need to flow both ways. Sri Yukteswar promised Master his unconditional love and then asked Master if he would offer him the same.

When we give our love to the Guru, he takes it and gives it to God.

Open communication, sharing of hearts and minds. We can be completely open with our Guru and feel safe. The disciple bears his soul to the Master. The Master bears his heart to the disciple.

Take your joys and problems to your Guru. Don’t be shy – he knows everything anyway. He is completely open when we bear our souls to Him.

Never try to deceive the Guru, because you cannot. He is right inside our heart and feels every one of our thoughts. Look for ways of thinking the Guru near.

Keep photographs of the Guru in many places you frequent during the day. Look at his picture and talk to him. Look at him at eye level so you can look right into his eyes. Sister keeps a picture nearby and starts her day talking to the Guru.

One who knows God can be a voice for the silent God.

Chant with him. Feel you are in Master’s presence as you listen to his voice, for indeed you are.

Hold Master’s hand when you want to keep him close. Sri Yukteswar held Master’s hand and led him to his first residence.

We have to learn to trust the Guru and the Guru’s love. His is pure, unconditional and eternal love.

How can we trust that the Guru’s love will always be there for us? Give Master the love you have felt for deceased loved ones.

We have to know and trust that the Guru is looking out for us. He has a better vantage point. He knows our past, present, and future. Like a wise father/mother, he may withhold things from us.

If we look back over our lives, we can see Master’s hand in our lives. Lay your desires at Master’s feet. When we trust the Guru, we are blessed with a tranquil heart.

Loyalty must flow both ways. The Guru will never forsake you. He will faithfully guide you back to God.

“I will be your friend from now to eternity, even if you err, for then you will need my friendship more than any other time” ~ Master

Our Guru will even embrace us with his love, no matter how many mistakes we make. Once the Guru has been found, you need to remain loyal to him through death and eternity.

Open your heart and keep him close in your thoughts.

How to realize his help and guidance in our lives? He is ever present. Never doubt he will always give his help to us. God’s love flows through the Master, to those whose are receptive to his transforming touch.

In AY, there are many stories of disciples being blessed by the Master’s transforming touch. Lahiri Mahasaya didn’t recognize Babaji until Babaji touched him on the forehead.

Sri Yukteswar possessed a transforming power. At his touch, a transforming light went through his being.

To be touched by a Master’s hand only requires inner attunement, not a physical touch. We want to become attuned so we can be receptive to the Guru’s touch.

What does the Guru’s help look like? We have to know and follow his guidance. Without attunement we can’t be receptive to the Guru’s guidance. Never doubt the Guru’s ability to help. God’s power flows through the Master to the disciple as long as the disciple is receptive. We might know we need the Guru’s help, but we might have expectations as to what this help looks like. We need to be receptive. Pray to attune yourself to the Guru.

How to attune ourselves? It naturally grows as we work on our personal relationships to the Guru.

Right activity and meditation – a balancing act. The long arm of Maya reaches in and pulls us away from balance and meditation. Every truth seeker should be able to express the dual nature of Martha & Mary (from the Hoffmann painting) – dutiful actions and absorbed meditation on God – a life of balance.

Monday, August 9, 2010

(courtsey- BBC Hindi service)

मधुमक्खियां सुबह

में अधिक चतुर

मधुमक्खी

हमारे बडे़ बुजुर्ग अक्सर यह सलाह देते हैं कि सुबह में उठने का फल मीठा होता है. लेकिन मधुमक्खियों पर किए गए एक शोध से भी यह बात साबित होती है.

जर्मनी के वैज्ञानिकों के शोध से पता चलता है कि सुबह के समय मधुमक्खियां अधिक चतुर होती हैं.

अध्ययन के मुताबिक भोर में मधुमक्खियां अच्छे गंध वाले फूलों की पहचान बेहतर तरीके से कर सकती हैं. इस तरह वे भोर में बेहतर कुशलता के साथ फूलों से शहद इकट्ठा कर सकती हैं.

अध्ययन का प्रकाशन बिहेवियरल इकोलॉजी एंड सोशियोबायोलॉजी में किया गया है. शोध करने वाली टीम ने एक हज़ार मधुमक्खियों पर शोध किया.

सुबह की तेज़ी

मधुमक्खियों की क्षमता का अध्ययन करने के लिए वैज्ञानिकों ने एपिस मेलिफेरा प्रजाति की एक हज़ार मधुमक्खियों को इकट्ठा किया.

इस प्रजाति की मधुमक्खियां शहद इकट्ठा करने में माहिर मानी जाती हैं.

नए-नए गंध की जानकारी देने के लिए मधुमक्खियों को दिन के अलग-अलग समय पर प्रशिक्षित किया गया. इसके बाद प्रशिक्षण किया गया कि क्या वे सही गंध की पहचान कर पाती हैं?

शोध दल का नेतृत्व जर्मनी के यूनिवर्सिटी ऑफ कोंसटांज़ के प्रोफ़ेसर जियोवानी गैलिज़िया ने किया.

बेहतर क्षमता

शोध में पाया गया कि मधुमक्खियों को सुबह प्रशिक्षित करने पर उनकी कुशलता अच्छी थी. सुबह में उनमें यह पता लगाने की क्षमता बेहतर थी कि फूलों की कौन सी गंध शहद इकट्ठा करने के लिहाज से बेहतर है.

इंसेक्ट बिहेवियर के विशेषज्ञ और यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के वैज्ञानिक डॉक्टर नाइजेल रैनी ने इस शोध को काफ़ी अहम बताया.

बीबीसी से बातचीत से उन्होंने बताया, "मधुमक्खियां हमारे जीवन में काफ़ी अहम हैं. उनके परागण से न केवल फसलों की क्षमता बढ़ती है, बल्कि प्राकृतिक सुंदरता भी बनी रहती है."

हालांकि काफ़ी समय पहले यह पता लगाया जा चुका है कि मधुमक्खियों की क्षमता दिन के अलग-अलग समय पर अलग-अलग होती है.

लेकिन शोधकर्ताओं के मुताबिक यह ऐसा पहला अध्ययन है जिससे साबित होता है कि सुबह मधुमक्खियों की पराग इकट्ठा करने की क्षमता बेहतर होती है.

Friday, August 6, 2010


रामकृष्ण परमहंस के गुरु तोतापुरी जी

विनय बिहारी सिंह

उन दिनों रामकृष्ण परमहंस दक्षिशेश्वर के प्रसिद्ध कालीमंदिर में रहते थे जिसे रानी रासमणि ने बनवाया था। यह सन १८६४ की बात है। तोतापुरी जी वेदांत के प्रकांड विद्वान थे। लेकिन वे २४ घंटा से ज्यादा एक पल भी कहीं ठहरते नहीं थे। वे घुमंतू साधु थे। उनका मानना था कि एक जगह कहीं भी रहने से लगाव होता है जो एक साधु के लिए ठीक नहीं है। साधु के लिए तो समूचा ब्रह्मांड खुला हुआ है। तोतापुरी जी शंकराचार्य की दसनामी परंपरा के साधु थे। जन्म तो उनका पंजाब में हुआ था लेकिन वे खुद को सारी पृथ्वी का रहने वाला मानते थे। रामकृष्ण परमहंस ने उनका नाम न्यांगटा साधु (नंगा साधु) रखा था। वे सचमुच नंगे रहते थे। उनका मानना था कि आत्मा पर यह शरीर अपने आपमें वस्त्र है। अब किसी अन्य वस्त्र की क्या जरूरत? बड़ा सा जटा जूट था उनका। यह मैं इस आधार पर कह रहा हूं क्योंकि दक्षिणेश्वर में तोतापुरी जी की एक बड़ी सी तस्वीर लगी हुई है। ठीक उस कमरे में जिसमें रामकृष्ण परमहंस रहते थे। तो तोतापुरी जी ने रामकृष्ण परमहंस को वेदांत परंपरा में दीक्षा दी। जो तोतापुरी जी कहीं भी २४ घंटे से ज्यादा नहीं रहते थे, वे दक्षिणेश्वर में तीन महीने लगातार रहे। वे कहा करते थे- कोई भी व्यक्ति घनघोर साधना कर जो अवस्था कई सालों बाद प्राप्त करता है, उसे रामकृष्ण परमहंस ने तीन दिन में ही प्राप्त कर लिया है। वे रामकृष्ण परमहंस की भक्ति के कायल थे। रामकृष्ण परमहंस पूरी तरह जगन्माता के ऊपर निर्भर थे। वे मां काली के अनन्य भक्त थे। कहते हैं मां काली ने उन्हें अनेक बार दर्शन दिया था। रामकृष्ण परमहंस कहते थे- मां काली ने मुझे दिखा दिया है कि जो राम हैं, वही कृष्ण हैं, वही शिव हैं और वही काली हैं, वही दुर्गा हैं। रामकृष्ण परमहंस कभी कृष्ण, कृष्ण कह कर रोने लगते थे तो कभी मां मां कह कर। उनके लिए राम, सीता, शिव, काली कृष्ण सब भगवान के रूप थे। नाम एक- भगवान। लेकिन रूप अनेक। जो जिसको पसंद हो वह रूप हृदय में धारण कर ले और उसी को समर्पित हो जाए।
तोतापुरी जी कहते थे- दस बार गीता गीता लगातार कहने से जो शब्द ध्वनित होता है, वही गीता का सार है। यानी आप गीता गीता जल्दी जल्दी कहेंगे तो वह हो जाएगा- तागी तागी। यानी त्यागी त्यागी। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और मद वगैरह का त्याग जब तक नहीं होगा, ईश्वर
का प्यार हम कैसे महसूस कर पाएंगे? इसलिए यह जानना जरूरी है कि यह संसार दरअसल स्वप्न है। असली संसार तो भगवान हैं

Thursday, August 5, 2010

संगीत ने कर दिया चमत्कार

विनय बिहारी सिंह


घटना तिरुवनंतपुरम की है। एक लड़की खेलते समय बेहोश हो गई और कोमा में चली गई। वहां के डाक्टरों ने उस पर एक प्रयोग किया। लड़की को कृष्ण का एक भजन बहुत पसंद था। लड़की के कान में हेडसेट लगा कर उसका प्रिय भजन दिन- रात बजाया जाने लगा। तीन दिन बाद डाक्टरों ने हेड सेट हटा लिया और स्पीकर से हल्की आवाज में भजन बजाया जाने लगा। दो दिन पहले यानी कोमा में जाने के दो महीने के भीतर ही इस लड़की को अचानक होश आ गया। उसने आंखें खोली और मुस्करा कर सबको देखा। इसे डाक्टर चमत्कार मान रहे हैं। उनका कहना है कि संगीत में कितनी ताकत है, यह एक बार फिर साबित हो गया। हम जब सोते रहते हैं या बेहोश रहते हैं तो भी हमारी सुनने की शक्ति बनी रहती है। भजन की ध्वनि तरंगे लड़की की चेतना में जाती रहीं। डाक्टरों का कहना है कि आमतौर पर ऐसे मामलों में होश नहीं आता। लेकिन इस मामले में चमत्कार हो गया है। विशेषग्यों का कहना है कि ईश्वरीय चेतना में रहने वाला व्यक्ति हमेशा सुरक्षित रहता है। इस लड़की को कृष्ण के भजन बेहद पसंद थे। वह जब भी इन भजनों को सुनती थी, आनंद में डूब जाती थी।
मुझे मुंबई के एक डाक्टर की बात याद आ रही है। इस डाक्टर के गले में कैंसर हो गया। इसका आपरेशन करना था। डाक्टर ने कहा कि मेरे कमरे में दिन रात भजन बजाए जाएं। वही किया गया। आपरेशन के पहले जब जांच की गई तो कैंसर गायब था। अब वही डाक्टर जब अपने मरीजों का आपरेशन करते हैं तो आपरेशन थिएटर में भजन बजाते रहते हैं। मैंने अपनी आंखों से एक अस्पताल के डाक्टर को देखा है जो आपरेशन के पहले भगवान श्रीकृष्ण की अस्पताल में लगी मूर्ति के सामने जाकर श्रद्धा से प्रणाम करते हैं। वे इस अस्पताल के मालिक भी हैं। मुझे एक सिद्ध सन्यासी की बात
याद आती है जिन्होंने कहा था- इवरीथिंग इज पासिबुल, इफ यू हैव फुल फेथ इन गॉड.

Wednesday, August 4, 2010

(coutesy- BBC Hindi service)

दिल अच्छा तो

दिमाग़ रहे बच्चा

दिल

1500 लोगों पर किए गए शोध में सामने आया कि दिमाग़ अगर बूढ़ा हो जाए तो सिकुड़ने लगता है.

अमरीका में एक शोध में सामने आया है कि अपने दिल को स्वस्थ रखने से दिमाग़ जल्दी बूढ़ा नहीं होता.

बॉस्टन यूनिवर्सिटी की टीम ने ये शोध 1500 ऐसे लोगों पर किया जो देखने में तो चुस्त थे लेकिन उनका दिल सुस्त था यानी उनका दिल ख़ून की कम मात्रा ही शरीर में भेज पाता था. इन लोगों के दिमाग़ की स्कैनिंग से पाया गया कि इनका दिल काफ़ी बूढ़ा है.

इन 1500 लोगों के दिमाग़ से सामने आया कि दिमाग़ अगर बूढ़ा हो जाए तो सिकुड़ने लगता है.

अकेले इन नतीजों के आधार पर कोई स्वास्थ्य संबंधी हिदायत देना जल्दबाज़ी होगी लेकिन इन नतीजों से समझ आता है कि दिल और दिमाग़ का स्वास्थ्य एक दूसरे पर निर्भर करता है

डॉक्टर जेफ़रसन, मुख्य शोधकर्ता

'सर्कुलेशन' पत्रिका के अनुसार अगर हृदय कमज़ोर हो तो दिमाग़ को औसतन दो साल बूढ़ा बना देता है.

ये शोध 30 से 40 वर्ष की उम्र वाले युवाओं और उम्रदराज़ लोगों पर किया गया.

इन युवाओं में दिल की कोई बीमारी नहीं थी जबकि बुज़ुर्ग दिल की किसी न किसी बीमारी से पीड़ित थे. इसके बावजूद दोनों के ही नतीजे एक दूसरे से जुड़े हुए निकले.

दिल ईसीजी

सर्कुलेशन पत्रिका के अनुसार दिल का कमज़ोर आउटपुट एक बार में दिमाग़ को दो साल और बूढ़ा बना देता है.

मुख्य शोधकर्ता डॉक्टर ऐंजेला जेफ़रसन ने कहा, "शोध में हिस्सा लेने वाले ये लोग बीमार नहीं हैं. इनमें से

बहुत कम संख्या ऐसे लोगों की है जिन्हें हृदय रोग है. शोध के सभी नमूनों के नतीजों में एक तिहाई में कार्डिएक इंडेक्स कम पाया गया है. कार्डिएक इंडेक्स के कम होने का संबंध छोटे मस्तिष्क से है. इस पर आगे और अध्ययन की ज़रूरत है".

शोधकर्ताओं का कहना है कि जिनपर शोध किया गया है उनमें दिमाग़ का सिकुड़ना इस बात का संकेत है कि कुछ गड़बड़ है.

अगर डिमेंशिया यानी मनोभ्रंश हो तो दिमाग़ और ज़्यादा सिकुड़ जाता है.

किसी का दिल अगर शरीर में ख़ून की कम मात्रा देता है तो इसका मतलब है कि मस्तिष्क तक भी ख़ून की कम मात्रा ही जा रही है. यानी मस्तिष्क के पोषण के लिए ज़रूरी पोषक तत्व और ऑक्सीजन भी दिमाग़ को कम मिल रहा है.

डॉक्टर जेफ़रसन ने कहा, "अकेले इन नतीजों के आधार पर कोई स्वास्थ्य संबंधी हिदायत देना जल्दबाज़ी होगी लेकिन इन नतीजों से समझ आता है कि दिल और दिमाग़ का स्वास्थ्य एक दूसरे पर निर्भर करता है."

बॉस्टन स्कूल ऑफ़ मेडिसिन की टीम इन सभी लोगों पर अपना शोध जारी रखेगी. आगे उनका मक़सद ये जानना होगा कि समय के साथ दिमाग़ में बदलाव के कारण याददाश्त पर भी कोई असर पड़ता है या नहीं.

Tuesday, August 3, 2010

Why do offer food to the Lord before eating it?


Indians make an offering of food to the Lord and later partake of it as prasaada – a holy gift from the Lord. In our daily ritualistic worship (pooja) too we offer naivedyam (food) to the Lord.

The Lord is omnipotent and omniscient. Man is a part, while the Lord is the totality. All that we do is by His strength and knowledge alone. Hence what we receive in life as a result of our actions is really His alone. We acknowledge this through the act of offering food to Him. This is exemplified by the Hindi words "tera tujko arpan"– I offer what is Yours to You. Thereafter it is akin to His gift to us, graced by His divine touch.

Knowing this, our entire attitude to food and the act of eating changes. The food offered will naturally be pure and the best. We share what we get with others before consuming it. We do not demand, complain or criticise the quality of the food we get. We eat it with cheerful acceptance ( prasaada buddhi).

Before we partake of our daily meals we first sprinkle water around the plate as an act of purification. Five morsels of food are placed on the side of the plate acknowledging the debt owed by us to the Divine forces ( devta runa) for their benign grace and protection, our ancestors (pitru runa) for giving us their lineage and a family culture, the sages (rishi runa) as our religion and culture have been "realised", aintained and handed down to us by them, our fellow beings ( manushya runa) who constitute society without the support of which we could not live as we do and other living beings (bhuta runa) for serving us selflessly.

Thereafter the Lord, the life force, who is also within us as the five life-giving physiological functions, is offered the food. This is done with the chant

praanaaya swaahaa,
apaanaaya swaahaa,
vyaanaaya swaahaa,
udaanaaya swaahaa,
samaanaaya swaahaa,
brahmane swaahaa

After offering the food thus, it is eaten as prasaada – blessed food.


- this beautiful write up is sent by respected Swami Krishnananda ji.