Thursday, March 26, 2009

नारद भक्ति सूत्र



विनय बिहारी सिंह


आइए आज नारद भक्ति सूत्र की बात करें। नारद मुनि योग, ग्यान और भक्ति के मिश्रण थे। उन्हें विष्णु का अवतार कहा जाता है। दो ग्रंथ अत्यंत प्रामाणिक माने जाते हैं- नारद जी का लिखा नारद सूत्र और शांडिल्य ऋषि का लिखा- भक्ति मीमांसा। नारद भक्ति सूत्र इसलिए भी प्रामाणिक है क्योंकि वह पूरी तरह अनुभव पर आधारित है। यह बात विख्यात है कि नारद जी किसी भी लोक या देवता से मिल सकते हैं। उन्हें कहीं भी जाने में क्षण भर लगता है। आइए नारद भक्ति सूत्र के कुछ अंश देखें-

वह तो (भक्त) ईश्वर में परम प्रेम रूपा है और अमृत स्वरूप है। उसे पाकर मनुष्य सिद्ध हो जाता है, अमर हो जाता है, तृप्त हो जाता है। न शोक करता है, द्वेष करता है, न विषयों में रमण करता है। जिसको जान कर (भक्त) उन्मत्त हो जाता है, स्तब्ध हो जाता है और आत्म संतुष्ट रहता है। भक्तिमान मनुष्य के मन में कामनाएं नहीं रहतीं। ईश्वर में ही अनन्यता और ईश्वर के विरुद्ध विषयों में उदासीनता रहती है। आवश्यक सांसारिकता आदि को निभाते रहना चाहिए, जैसे- स्नान, भोजन आदि कर्म शरीर के निर्वाह के लिए जरूरी है। पूजा आदि के प्रति अनुराग भी भक्ति है। गर्ग मुनि के मुताबिक भागवत आदि कथाओं में रुचि होना भी भक्त के लक्षण हैं। भगवान पर अपना सब कुछ छोड़ कर, उन्हें भूल जाने पर व्याकुल हो जाना अनन्य भक्त के लक्षण हैं। भगवान के महात्म्य को जाने बिना उनसे प्रेम, साधारण प्रेम कहा जाता है। भक्ति योग, ग्यान योग और कर्म योग से भी बड़ा है। क्योंकि ग्यान औऱ कर्म योग से भक्ति मिलती है। जैसे राजा भोजन और वस्त्र सिर्फ देख कर ही संतुष्ट नहीं होता, उसका भोग भी आवश्यक है, उसी तरह भक्त के लिए भक्ति की बात पढ़ना या सुनना संतुष्टिदायक नहीं होता। भक्त तो खुद भगवान को महसूस करना चाहता है। बिना रुके भगवान को याद करना, लोगों से घिरे हो कर भी, भगवान में मन लगे रहना और निरंतर उनका स्मरण, सिद्ध महात्माओं का संग मिलना व्यर्थ नहीं जाता। लेकिन ऐसे महात्माओं का मिलना ईश्वर की कृपा से ही संभव है। भगवान में और सत में कोई अंतर नहीं है। भगवत प्राप्ति के लिए गहरी साधना जरूरी है। बुरी संगत सदा के लिए त्याग देनी चाहिए। काम और क्रोध बुद्धि को नष्ट कर देते हैं और ये साधना में बाधा हैं। सच्चा भक्त लाभ और रक्षा के लिए चिंता नहीं करता। वह तो भगवान में हमेशा ही डूबा रहता है। यह था नारद भक्ति सूत्र का एक छोटा सा अंश। इसे पढ़ कर सचमुच मन पवित्र होता है।

3 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

इसकी बड़ी अच्छी व्याख्या आचार्य रजनीश ने की है. कभी मौक़ा मिले तो ज़रूर पढ़ें.

Unknown said...

जी जरूर। मेरी इस विषय में गहरी रुचि है।

jyoti verma said...

sundar bhakti bhav ka vivran kiya hai apne. isi tarah lekh likh kar hume kritarth kare..