Friday, December 26, 2008

संत नामदेव



विनय बिहारी सिंह


संत नामदेव अपने समय के विलक्षण संत थे। उनका जन्म तो महाराष्ट्र के सतारा जिले के गांव नारस वामनी में हुआ था। लेकिन उनके जन्म के बाद ही उनके माता- पिता सोलापुर जिले के पंढरपुर में बसने चले गए। पिता दर्जी का काम करते थे। पंढरपुर में ही भगवान का एक मंदिर था- जिसे विट्ठल या विठोवा कहा जाता था। जब नामदेव पांच साल के थे तो उनकी मां ने कुछ प्रसाद चढ़ाने के लिए दिया और कहा कि वे इसे विठोवा को चढ़ा दें। नामदेव सीधे मंदिर में गए और विठोवा को प्रसाद चढ़ा कर कहा कि इसे खाओ। लोगों ने कहा- यह मूर्ति है। खाएगी कैसे? लेकिन नामदेव मानने को तैयार नहीं थे कि विठोवा उनका प्रसाद नहीं खाएंगे। बच्चे की जिद मान कर सब अपने- अपने घर चले गए। मंदिर में कोई नहीं था। नामदेव धाराधार रोए जा रहे थे और कह रहे थे- विठोवा या तो यह प्रसाद खाओ नहीं तो मैं यहीं, इसी मंदिर में जान दे दूंगा। दिल को चीर देने वाली बच्चे की कारुणिक पुकार सुन कर विठोवा पिघल गए। वे हाड़- मांस के जीवित व्यक्ति के रूप में प्रकट हुए और विठोवा का प्रसाद खाया। नामदेव को भी खिलाया। नामदेव तो विठोवा के दीवाने हो गए। दिन- रात विठोवा, विठोवा या विट्ठल, विट्ठल की रट लगाए रहते थे। धीरे- धीरे स्थिति यह हो गई कि नामदेव की हर सांस विठोवा के नाम से चलने लगी। नामदेव ने कई चमत्कार भी किए। लेकिन मजा यह था कि नामदेव को यह मालूम नहीं था कि वे चमत्कार कर सकते हैं। एक व्यक्ति का एक पैर बिल्कुल खराब था। उसे विठोवा मंदिर की सीढियां चढ़ने में बहुत कष्ट होता था। नामदेव ने उसके खराब पैर को थोड़ी देर के लिए सहलाया औऱ उस व्यक्ति के पैरों में ताकत आ गई। वह व्यक्ति तो नामदेव के पैरों पर ही गिर पड़ा। नामदेव चकित थे, बोलेम- एसा क्यों कर रहे हो मित्र? वह बोला- भगवन आपने मेरे ऊपर असीम कृपा कर दी। नामदेव भोले ढंग से बोले- मेरी क्या ताकत है मित्र? सब विठोवा करते हैं। बहाना किसी को बना देते हैं। जो तुम हो वही मैं हूं।

1 comment:

KUNWAR PREETAM said...

भाई साहब आपका ब्लॉग कमाल कर रहा है. हिंदू धर्म के संतों के बारे में आपके यहाँ भरपूर सामग्री मिलती है. कई नई जानकारियां भी. सबसे सुखद यह है की आपका लेखन नियमित है. आपकी लेखनी यूँ ही अनवरत जारी रहे, यही शुभकामना है
प्रकाश चंडालिया